नई दिल्ली: डार्विन का विकासवाद सिद्धांत कहता है कि सभी जीवित प्राणी प्राकृतिक चयन के माध्यम से विकसित हुए हैं और अल्बर्ट आइंस्टीन का सिद्धांत कहता है कि द्रव्यमान और ऊर्जा विनिमय यानी अदला बदली होने योग्य हैं. ये दोनों सिद्धांत परस्पर विरोधी हैं लिहाजा गलत हैं… देश को सर्वोच्च न्यायालय में इसी विषय पर एक अजीबोगरीब याचिका दाखिल हुई. याचिका में डार्विन के प्राकृतिक चयन और जैविक विकास के सिद्धांत के साथ ही अल्बर्ट आइंस्टीन के किसी पदार्थ के द्रव्यमान और ऊर्जा की सापेक्षता के सिद्धांत के सूत्र ई=एम सी2 को चुनौती देते हुए इन्हें गलत बताया. ऋषिकेश निवासी राजकुमार ने अपनी याचिका में गुहार लगाई कि इन सिद्धांतों में सुधार के लिए सर्वोच्च न्यायालय दखल दे. क्योंकि डार्विन के इस गलत सिद्धांत को स्वीकार करने की वजह से दो करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है. यह और बात है कि सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस याचिका पर नाराजगी जताते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने के लिए नहीं बैठे हैं. बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता अपना सिद्धांत खुद प्रतिपादित करें. आप कह रहे हैं कि आप विज्ञान के छात्र रहे हैं और आपने भी ये सिद्धांत पढ़ा है. आपकी दलील है कि गलत सिद्धांत पढ़ाया गया. आपको ऐसा लगता है तो इसमें सर्वोच्च न्यायालय कुछ नहीं कर सकता. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता इस सिद्धांतों को गलत बताते हुए एक मंच चाहता है. इसलिए यहां आया है. पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले पर सीधे विचार करने से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता का यह विश्वास है कि ये सिद्धांत गलत हैं तो वो अपने विश्वास और विचार का प्रचार करे. लेकिन शीर्ष न्यायालय इस पर विचार नहीं करेगा. क्योंकि अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी फरियादी तभी सर्वोच्च न्यायालय में सीधी अर्जी दाखिल कर सकता है और अदालत इस पर सुनवाई कर सकती है, जब किसी के बुनियादी अधिकारों का हनन हो और वह मुद्दा मौलिक अधिकारों से जुड़ा हो. इस पर याचिकाकर्ता राजकुमार ने कहा कि फिर उसे क्या करना चाहिए? कहां जाना चाहिए? इस पर पीठ ने कहा कि ये कोर्ट सलाह देने के लिए नहीं है. आपका जहां मन करे वहां जाइए, लेकिन हमसे सुनवाई को मत कहिए, न ही हम इस बारे में विचार करेंगे.