श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के जाने माने लेखक, कवि, अनुवादक, पत्रकार और साहित्य अकादेमी से सम्मानित गुलाम नबी ख्याल के निधन से कश्मीरी और उर्दू साहित्य जगत दुखी है. ख्याल 85 वर्ष के थे. कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने ख्याल के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मैं प्रसिद्ध विद्वान और कवि गुलाम नबी ख्याल के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करता हूं, जिन्हें मैं 3 दशकों से अधिक समय से जानता था. ख्याल ने विश्व प्रसिद्ध कवि उमर खय्याम की चौकड़ी का कश्मीरी भाषा में अनुवाद किया, जिसे काफी सराहना मिली. वह एक सच्चे विद्वान थे जिन्होंने कश्मीरी और उर्दू भाषाओं में गद्य और कविता लिखी और इन भाषाओं में अपने योगदान के लिए सराहना अर्जित की. सोज ने कहा कि ख्याल ने अपने साप्ताहिक ‘द वॉयस ऑफ कश्मीर‘ के माध्यम से विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों को जोड़ा. उनकी विचार-प्रक्रिया पूरी तरह से स्पष्ट थी. वह गंभीर राजनीतिक मुद्दों पर अपनी टिप्पणियों के लिए व्यापक रूप से जाने जाते थे.
ख्याल को न केवल उर्दू और कश्मीरी भाषाओं में उनके योगदान के लिए, बल्कि कश्मीर से जुड़ाव की गहरी भावना के लिए भी लंबे समय तक याद किया जाएगा. अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी सहित प्रमुख राजनीतिक नेताओं ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. बुखारी ने ख्याल को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने अपने लेखन से साहित्यिक क्षेत्र में क्रांति ला दी थी. उन्होंने कहा, “ख्याल के निधन से साहित्यिक क्षेत्र में एक शून्य पैदा हो गया है और हमें उनके जैसा कोई दूसरा ढूंढने में काफी समय लगेगा.” याद रहे कि ख्याल साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित रचनाकार थे. ख्याल को 1975 में उनकी पुस्तक ‘गाशिक मीनार‘ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था था. ख्याल ने 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं थीं. उन्होंने 1950 के दशक में ‘रेडियो कश्मीर‘ से समाचार वाचक के रूप में अपना करियर की शुरुआत की थी.