प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेजर ध्यानचंद गतिविधि केंद्र के सभागार में वाणी प्रकाशन की ओर से आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी में ‘दलित साहित्य की प्रासंगिकता‘ विषय पर संगोष्ठी हुई. मुख्य वक्ता नेत्र विशेषज्ञ व साहित्यकार डा राम मिलन ने कहा कि दलित साहित्य को बहुजन साहित्य कहना ज्यादा सार्थक है. दलित साहित्य के संवर्धन के लिए सभी विधाओं में लेखन जरूरी है. इसी क्रम में डा सूर्य नारायण सिंह ने कहा कि दलित साहित्य की अपनी सांस्कृतिक पहचान है. दलित साहित्य का आधार विपुल और विस्तृत है. अध्यक्षता कर रहे संत देवेन्द्र साहेब ने कहा कि दलित साहित्य कमजोर होगा तो इसका प्रभाव संस्कृति और समाज पर भी पड़ेगा.
विशिष्ट वक्ता डा मनोज कुमार ने कहा कि सामाजिक और आर्थिक समस्या हमेशा से रही है. दलित एक गतिशील शब्द है, जो खास पहचान को सिद्ध करता है. डा रमा शंकर सिंह ने कहा कि दलित साहित्य की जड़ें कबीरदास और रैदास के साहित्य से जुड़ी हैं. डा बृजेन्द्र गौतम ने कहा कि दलित साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है. स्वागत वाणी प्रकाशन के स्थानीय प्रबंधक विनोद तिवारी ने किया. संगोष्ठी का संचालन शोधार्थी कुलदीप कुमार गौतम ने तो आभार ज्ञापन डा अमरजीत राम ने किया. इस मौके पर पूजा, प्रमोद कुमार, जय सिंह यादव, सुनील कुमार यादव, अंकित पांडेय सहित बड़ी संख्या में शोध छात्र और साहित्यप्रेमी उपस्थित थे.