रांची: विश्वंभर फाउंडेशन ने मैथिली साहित्यकार प्रदीप बिहारी और ओड़िआ अनुवादक संघमित्रा का सम्मान समारोह आयोजित किया. इस अवसर पर डा नरेंद्र झा ने कहा कि प्रदीप बिहारी मैथिली साहित्य के न केवल कथाकार हैं, बल्कि समाज का दर्पण भी हैं. उन्होंने प्रदीप बिहारी के साहित्य पर विहंगम व्याख्या प्रस्तुत की और उनकी कोरोना के दौर पर आधारित कृति ‘मृत्यु लीला‘ की चर्चा की. समारोह में प्रदीप बिहारी ने कहा कि हरिमोहन झा, मणिपद्म और राजकमल चौधरी, तीन ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने आधुनिक मैथिली साहित्य को दिशा देने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनके साहित्य का जो स्वरूप है, वह प्रीमेच्योर्ड डिलीवरी जैसा है. प्रदीप ने राजकमल चौधरी के उपन्यास ‘मछली मरी हुई‘ की भी चर्चा की. उन्होंने मणिपद्म के साहित्य के विन्यास और सौंदर्य पर प्रकाश डाला. साथ ही अपने जीवन एवं संघर्ष के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की. संघमित्रा जिन्होंने मैथिली साहित्य का ओड़िआ में अनुवाद किया है, ने कहा कि मैथिली साहित्य में जो भाव हैं, वह सचमुच मन को झंझोड़ देने जैसा हैं, वही भाव अनुवाद के बाद ओड़िआ में भी आए, इसके लिए नये तरीके से सृजन कर उन्हें समझने की जरूरत है.
कार्यक्रम में दूरदर्शन केंद्र रांची के भूतपूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा ने मैथिली भाषा, साहित्य, विश्व साहित्य और भारत के विभिन्न साहित्यकारों पर अपना आख्यान प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य समृद्ध है और इसे और अधिक समृद्ध करने की जरूरत है. सियाराम झा सरस ने कहा कि प्रदीप और मेरे बीच गहरा संबंध रहा है. यदि इन्हें साहित्यकार जीवकांत का पट्ट शिष्य कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. उन्होंने कहा कि जिस बिंदु को जीवकांत ने केवल छुआ, प्रदीप बिहारी ने उसे अपने साहित्य में गंभीरता के साथ स्थान दिया. विश्वंभर फाउंडेशन के सचिव नवीन कुमार झा ने कथाकार प्रदीप बिहारी और ओड़िआ साहित्यकार संघमित्रा का मैथिली परंपरा अनुसार पाग और दुपट्टा देकर सम्मानित किया. उन्हें मिथिला का पारंपरिक चिह्न मछली का चित्र भी दिया गया. संचालन डा कृष्ण मोहन झा ने किया. प्रबंध किशोर मालवीय के जिम्मे था. कार्यक्रम में साम्यवादी चिंतक एवं शिक्षक नेता बाबूलाल झा, झारखंड अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के अध्यक्ष अमरनाथ झा, मैथिली के अवकाश प्राप्त प्राध्यापक मोहन झा पड़ोसी समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे.