नई दिल्ली: ”हिंदी की वजह से ही हम संवाद कर पा रहे हैं वरना अपने ही आंगन में गूंगे-बहरों की तरह रहते. हिंदुस्तान के तमाम राज्यों को जोड़ती है हिंदी. बातचीत में शुद्ध हिंदी की मांग नहीं होनी चाहिए. दरअसल हिंदी बोलियों के समूह की भाषा है. बोलियों का विकास हिंदी का विकास है. हिंदी की लड़ाई अंग्रेजी से है, बोलियों से नहीं. इसलिए हिंदी को उसके डायलेक्ट के साथ फलने-फूलने दिया जाय.” यह बात अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि लेखक-साहित्यकार मनोज भावुक ने कही. आरंभ में एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर टी जी सीताराम, उपाध्यक्ष डा अभय जेरे, सचिव प्रोफेसर बी आर काकड़े, सलाहकार डा आर के सोनी, डा ममता रानी अग्रवाल और भावुक ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. फिर भावुक ने हिंदी के विकास व गिरमिटिया देशों में उसकी यात्रा, तकनीकी शिक्षा और हिंदी, बतौर टेक्नोक्रेट अपने अफ्रीका व यूरोप प्रवास के अनुभव को साझा किया.
सभागार में उपस्थित पूरबिया लोगों की मांग पर मनोज भावुक ने अपनी प्रसिद्ध हिंदी कविता ‘खिलने दो खूशबू पहचानो, बस तुम अच्छे लगते हो, वसंत आया, पिया न आए…‘ गाकर युवाओं को झूमने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने अपनी भोजपुरी गजलें भी सुनाईं, जिनमें ‘सूरज खड़ा बा सामने आ रात हो गइल और रंग चेहरा के बा उड़ल काहे/ चोर मन के धरा गइल बा का!‘ भी शामिल था. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर टी जी सीताराम ने तकनीकी शिक्षा के लिए हिंदी के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अनेक योजनाओं का जिक्र किया और अपने भाषण का समापन इस वादे के साथ किया कि अगले वर्ष अपनी हिंदी को और बेहतर करके मिलूंगा. इस अवसर पर डा आर के सोनी ने हिंदी पखवाड़ा संबंधी रिपोर्ट पेश की और इस दौरान आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के 110 विजेताओं को अतिथियों ने पुरस्कृत भी. एआईसीटीई के उप निदेशक, कवि डा निखिल कांत व अवधेश कुमार ने संयोजन किया. हिंदी अधिकारी रीना शर्मा ने संचालन किया.