पटना: सरस्वती साहित्य संगम ने शहर के वीएम हाई स्कूल के सभागार में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर काव्य गोष्ठी व ‘वर्तमान परिवेश में राष्ट्रकवि दिनकर की उपादेयता‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया. कार्यक्रम की शुरुआत प्रो सुभाषचंद्र यादव की सरस्वती वंदना से हुई. जयंती समारोह को संबोधित करते हुए संस्था की अध्यक्ष व पूर्व प्राचार्या डा सुशीला पांडेय ने दिनकर को उन्हीं की इन पंक्तियों ‘छीनता हो सत्व कोई, और तू: त्याग-तप के काम ले, यह पाप है, पुण्य है विछिन्न कर देना बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है‘ से रेखांकित किया. प्रो डा त्रिपाठी सियारमण ने दिनकर को याद करते हुए कहा कि रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि थे. वह किसी भी साहित्य के वाद से परे थे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व बनारस से आए रामाशीष सिंह ने कहा कि दिनकर का मानना था कि इस देश का प्रबुद्ध वर्ग कैंपस के भीतर नहीं कैंपस के बाहर रहता है. कलम और कुदाल से इस देश का युवा पैदा होता है.
मुख्य अतिथि सिंह ने ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ पर टिप्पणी करते हुए ने कहा कि यह भारत के मन का प्रतिनिधित्व करता है. वसुधैव कुटुम्बकम भारत के राष्ट्रवाद का विस्तार है. दिनकर सिर्फ वीर रस के कवि नहीं थे, वह मानवता के भी कवि थे. इसका सबूत हमें उनकी रचना ‘स्वानों को मिलता दूध यहां, भूखे बच्चे अकुलाते हैं‘, से मिलता है. दिनकर केवल कवि और लेखक नहीं है, हमारे लिए वरेण्य हैं. उनकी जयंती सिर्फ एक दिन मनाने की बात नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें रोज पढ़ने की जरूरत है. जयंती समारोह के अगले चरण में आयोजित काव्य गोष्ठी में जय गोविन्द तिवारी ने अपनी रचना ‘युगपुरुष श्रेष्ठ भारत के तुम बन शौर्य धरा पर गए निखर‘, मनोज वर्मा ने ‘पहले घर में सोफा नहीं था, कुर्सियां भी, लोग मिलने आते थे, अब घर में सोफा है, कुर्सियां नहीं‘, विजय लक्ष्मी बिनोदिनी ने अपनी रचना ‘अब तो गुलशन संवरने वाला है, पा गई है धरा सूरज, अब तो जर्रा-जर्रा चमकने वाला है‘ सुनाई. आरती आलोक वर्मा व ओम प्रकाश ने भी अपनी रचनाएं सुनाईं. संस्था के निदेशक प्रो रामचंद्र सिंह व पीएनबी के पूर्व प्रबंधक शंकर पांडेय सहित गणमान्य लोग उपस्थित थे.