नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में रहने वाले गुजरातियों के बीच गुजराती भाषा, साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शाह ऑडिटोरियम में श्रीसमाज द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर पद्मविभूषण से सम्मानित गुजरात गौरव नृत्यांगना और राज्यसभा संसद डा सोनल मानसिंह ने गुजराती संस्कृति और साहित्य पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि केवल गुजराती भाषा बल्कि पूरी गुजराती संस्कृति और साहित्य अन्य भाषाओं और विशेषकर अंग्रेजी के व्यापार-व्यवसाय में उपेक्षित नजर आती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में गुजरात में गुजराती के नाम पर एक अजीब भाषा बोली और लिखी जाती है, जो हिंदी और अंग्रेजी का विचित्र-सा मिश्रण है. लगता है कि यह कोई नई भाषा है। लेकिन यह गुजराती समाज में सबको आती है और इस तरह सब चलता है, चल जाता है. परन्तु ऐसे माहौल में गुजरात की मूल पहचान पर असर पड़ना स्वाभाविक है. मानसिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि गुजराती भाषा की गरिमा की रक्षा के लिए चिंतित होकर त्वरित और ठोस कदम उठाया जाए.
कार्यक्रम में श्रीसमाज के अध्यक्ष सचिन शाह ने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसकी भाषा से ही होती है और आज गुजराती लोग दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच गये हैं, बसे हैं और हर तरह से वे सफल हैं, लेकिन जहां भी गुजराती लोग हैं, वहां गुजराती भाषा और संस्कृति को उनके जीवन में संरक्षित किया जाना चाहिए. किसी भी क्षेत्र में गुजराती व्यक्ति की यथार्थ और वास्तविक सफलता यही है. कार्यक्रम में नरसिंह मेहता की रचना ‘जलकमल छाड़ि जाने‘, वीर नर्मद की रचना ‘जय गरवी गुजरात‘, उमाशंकर जोशी की रचना ‘मली मातृभाषा मने गुजराती‘, झवेरचंद मेघानी की रचना ‘मोर बनी थंगाट करे‘ और अन्य रचनाएं प्रस्तुत की गईं. ‘गीत अमे गोत्यूं‘ और अन्य गीतों पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत कर गुजराती भाषा के उन्नत वैभव का प्रदर्शन किया गया. श्रीसमाज की नाट्योत्सव समिति के अध्यक्ष भाग्येन्द्र पटेल ने इस कार्यक्रम की परिकल्पना, संयोजन एवं संचालन किया. नाट्योत्सव के संयोजक राजेश पटेल, कल्पना दोशी और ‘मातृभूमि‘ समाचार पत्र समूह की पूर्व उत्तर क्षेत्रीय प्रबंधक पत्रकार मीता संघवी ने व्यवस्था में सहयोग किया. श्रीसमाज के मानद मुख्यमंत्री हितेश अंबानी ने कहा कि यह दिल्ली के गुजराती लोगों को गुजराती मातृभाषा, विशेष रूप से श्रीसमाज के द्वारा अपने निजी साहित्य और भाषाई जनजागृति पैदा करने की दिशा में एक नई पहल है और आने वाले समय में इस तरह की गतिविधियां फलती-फूलती रहेंगी.