नई दिल्लीः इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में ‘हिंदी दिवस‘ के अवसर पर राष्ट्र के सबसे लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक जागरण ने ‘हिंदी हैं हम‘ अभियान के तहत अभिव्यक्ति का उत्सव मनाया और जागरण ‘संवादी‘ का आयोजन किया. इस आयोजन का तीसरा सत्र ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हिंदी‘ विषय पर केंद्रित था. इस सत्र में लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक, एनआईईपीए की कुलपति प्रो शशिकला वंजारी और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान की अध्यक्ष प्रो सरोज शर्मा से प्रो रवि प्रकाश टेकचंदाणी ने संवाद किया. प्रो पाठक ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि इसके बने तीन ही वर्ष हुए हैं, पर इसका उपयोग और लाभ धीरे-धीरे सामने आने लगा है. उन्होंने कहा कि इससे पहले ढुलमुल शिक्षा नीति और उनकी बुनियाद के भारतीय न होने से हिंदी का बड़ा नुकसान हुआ और उसे जो सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिला. 1968 के कोठारी कमीशन और 1986 की शिक्षा नीति को 1836 के लार्ड मैकाले प्रारूप से प्रेरित बताते हुए उन्होंने इनकी तुलना ढांचे और सांचे से की. उन्होंने कहा कि जब प्रारूप ही गलत होगा तो यह उपयोगी कैसे होगा. 2020 की नई शिक्षा नीति ने सांचा और ढांचा दोनों बदला है इसलिए प्रारूप ही बदल गया.
राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान ‘एनआईईपीए‘ की कुलपति प्रो शशिकला वंजारी ने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है. नई शिक्षा नीति को समझने के लिए मानसिकता का होना बहुत जरूरी है. कुछ लोग इसे न समझने का ढोंग कर रहे हैं, जो उचित नहीं है. स्वामी विवेकानंद को याद करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामीजी ने शिक्षा के दो प्रकार बताए थे. एक सकारात्मक शिक्षा और दूसरी नकारात्मक शिक्षा. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान की अध्यक्ष प्रो सरोज शर्मा ने भी नई शिक्षा नीति की बात की और कहा कि हिंदी को लेकर जो संताप अब तक होता था, उनके दिन अब चले गए हैं. देवनागरी लिपि सबसे वैज्ञानिक लिपि है और हिंदी वैज्ञानिक भाषा. इसका भविष्य उज्ज्वल है, इसलिए अपनी भाषा में ही बात करना चाहिए. उन्होंने हिंदी भाषियों की बड़ी संख्या का उल्लेख किया और कहा कि सबसे ज्यादा बोली जाने वाली हिंदी को दूसरी भाषाएं अपनी बड़ी बहन के तौर पर देखें तो कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी.