नई दिल्ली: हमारे पास जब राष्ट्र भाषा जैसा शब्द है, तो हम राजभाषा का प्रयोग क्यों करते हैं? यह प्रश्न दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने हिंदी दिवस के अवसर पर ‘हिंदी हैं हम‘ अभियान के अंतर्गत राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित जागरण ‘संवादी‘ के उद्घाटन सत्र में पूछा. हिंदी की वर्तमान स्थिति और भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी के संबंध में कई बार भ्रांतियां उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है. हिंदी राष्ट्र की भाषा है और इसे कुछ करोड़ लोगों के बोलने तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए. इसके साथ ही इसे रोजगार से जोड़ा जाता है, जो ठीक नहीं है. भाषा संस्कार, स्वाभिमान और सम्मान का विषय है. हिंदी के कठिन शब्दों को लेकर प्रचलित भ्रांतियों पर उन्होंने कहा कि शब्द कठिन नहीं होते, बल्कि वे परिचित-अपरिचित होते हैं. इसलिए उन्हें जानें, उनके प्रति आग्रह रखें, दुराग्रह नहीं.
इस सत्र में केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक सुनील कुलकर्णी ने कहा कि हिंदी कभी इस देश के राजकाज की भाषा नहीं रही है. यह सदैव संपर्क भाषा के रूप में रही है. भूमंडलीकरण के बाद बाजार की भाषा के रूप में अवश्य यह अपना परचम फहरा रही है. जिस भाषा को हम राष्ट्रभाषा का स्वप्न संजोते आ रहे हैं वह कब विश्व बाजार की भाषा बन गई, हमें पता ही नहीं चला. आजादी आंदोलन के समय हिंदी ने पूरे देश को एक सूत्र में बांधने का काम किया, इसीलिए इस देश को स्वतंत्र कराने में स्वतंत्रता सेनानियों के बराबर का योगदान हिंदी में लेखन करने वालों का भी रहा है. उन्होंने भाषा के प्रसार में समाचार-पत्रों की भूमिका की सराहना की और दैनिक जागरण के योगदान को याद किया. इस सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी, केंद्र की निदेशक- प्रशासन प्रियंका मिश्र के साथ बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार और संस्कृतकर्मी उपस्थित थे. सत्र का संचालन केंद्र के राजभाषा निदेशक अजीत कुमार ने किया.