नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद द्वारा 130 वर्ष पहले शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिया गया का भाषण आज भी वैश्विक एकता और सद्भाव के शंखनाद के रूप में प्रतिध्वनित होता है. प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा: “स्वामी विवेकानंद का शिकागो में 130 साल पहले आज ही के दिन दिया गया भाषण आज भी वैश्विक एकता और सद्भाव के शंखनाद के रूप में प्रतिध्वनित होता है. मानवता के व्यापक भाईचारे पर जोर देते हुए उनका कालातीत संदेश हमारे लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है.” याद रहे कि 11 सितंबर, 1893 को शिकागो में खचाखच भरे हाल में स्वामी विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है. मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं.
स्वामीजी ने कहा था कि मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजरायल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था. फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी. लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है. भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है- ‘रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम…नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव…‘ इसका अर्थ है- जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं. इसी भाषण में उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकता, कट्टरता और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है. न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा.