नई दिल्ली: भारतीय भाषाओं की कहानियों का अपना ही एक लालित्य है और रंगमंच पर इसकी अपनी ही एक छटा उभरती है. इसकी झलक मिथिला रंग महोत्सव के दौरान राजधानी में दिखी, जब मिथिला रंग महोत्सव के दौरान राजा नान्यदेव की राजनर्तकी ‘मीनाक्षी उर्फ मनकी‘ की कहानी के मंचन ने सबका दिल जीत लिया. हालांकि ‘ललका पाग‘ को भी कम सराहना नहीं मिली. मैथिली नाटकों का यह मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख प्रेक्षागृह में हुआ. इस आयोजन में दिल्ली की कई नाट्य संस्थाओं ने अपनी उपस्थिति दी. इनमें मेलोरंग, अष्टदल कला अकादमी, जय–जोहार फॉउण्डेशन, अभिनंदन, धनार्या प्रोडक्शन आदि की प्रस्तुतियों के लिए संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के साथ साथ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संगीत नाटक अकादमी आदि ने सहयोग किया था . महोत्सव में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक एवं जानेमाने लेखक अमिताभ श्रीवास्तव, हिंदी अकादमी दिल्ली के उप-सचिव ऋषि कुमार शर्मा, एनसीआरटी. भोपाल केंद्र से डा अरुणाभ सौरभ आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
आयोजन का प्रारम्भ ‘गणेश-अष्टकम्‘ से हुआ जिसमें मंजूषा एवं ईशिका ने नृत्य प्रस्तुति दी. इसके बाद रमन कुमार के निर्देशन में झांसी की रानी केंद्रित ‘दास्तान-ए- झांसी‘ प्रस्तुति हुई. आयोजन का दूसरा दिन मैथिली रंगमंच के लिए समर्पित रहा. महोत्सव के दूसरे दिन हरिमोहन झा लिखित सुप्रसिद्ध कथा ‘ललका पाग‘ का मंचन ज्योति झा के निर्देशन में ‘जय जोहार‘ नाट्य संस्था ने किया. यह नाटक दांपत्य जीवन के विच्छेदन पर कड़ा प्रहार करता है. इसमें सभी रंगकर्मी महिलाएं ही थीं. आयोजन की खास प्रस्तुति प्रकाश झा के निर्देशन में ‘मीनाक्षी‘ राजनर्तकी मनकी की गाथा रही. यह कथा 1070 ई. में मिथिला के राजा नान्यदेव तथा बंगाल के राजा बल्लालसेन के मध्य हुई लड़ाई की है. साहित्यकार मन मोहन झा ने इसे लिखा है. इतिहास में संभवत: यह एकलौती ऐसी लड़ाई होगी जो राज्य पर कब्जे के लिए नहीं बल्कि सिर्फ ज्ञान के स्रोत दुर्लभ ग्रंथों को लूटने के लिए लड़ी गई थी. राजा नान्यदेव की राजनर्तकी ‘मीनाक्षी उर्फ मनकी‘ अपने बुद्धि कौशल, देशभक्ति और चातुर्य से न केवल मिथिला की दुर्लभ पाण्डुलिपि बचाती है बल्कि अपने राजा नान्यदेव का जीवन एवं मिथिला राज्य की स्वतंत्रता और संप्रभुता को अपनी जिंदगी कुर्बान कर सुरक्षित रख लेती है.