जयपुर: जवाहर कला केंद्र में कला संसार के तहत आयोजित दो दिवसीय ‘स्पंदन‘ कार्यक्रम के दूसरे दिन जो कार्यक्रम आयोजित हुए उनमें राजस्थान के महान साहित्यकार विजयदान देथा ‘बिज्जी‘ पर दो संवाद सत्रों का आयोजन विशेष था. चेत मानखा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सत्रों में विजयदान देथा के साहित्यिक और भाषाई योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई. बीज वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने बिज्जी से जुड़ी स्मृतियों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि राजस्थान को बिज्जी जैसा साहित्यकार मिलना सौभाग्य की बात है. पद्मश्री चंद्र प्रकाश देवल की अध्यक्षता में हुए सत्र ‘लोक में बिज्जी अर बिज्जी रौ लोक‘ में चेतन स्वामी, मालचंद तिवाड़ी, कैलाश कबीर ने अपने विचार रखे.
राजस्थानी कहानी के आलोचक चेतन स्वामी ने कहा कि विश्व साहित्य के सबसे बड़े साहित्यकार माने जाने वाले शेक्सपियर के सम्पूर्ण लेखन में पांच हजार पंक्तियां है, लेकिन विजयदान देथा के सम्पूर्ण लेखन में सवा लाख शब्द राजस्थानी के हैं. मालचंद तिवाड़ी ने विजयदान देथा बिज्जी के लेखन की मौलिकता पर प्रकाश डाला. कवि और अनुवादक कैलाश कबीर ने बिज्जी की कहानियों में नारी पात्रों पर विमर्श किया. उन्होंने बिज्जी की कहानी ‘दुविधा‘ का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह बिज्जी लोक जगत से प्रेरित होकर कहानी का बीज रोपित करते थे, शब्दों के साथ यह बीज बरगद के रूप में पल्लवित होते रहे. चंद्र प्रकाश देवल ने बोरुंदा की विरासत विषय पर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कैसे कोमल कोठारी और विजय दान देथा ने बोरुंदा की जमीन से सांस्कृतिक पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि तैयार की. इस सत्र का संचालन कथाकार संदीप मील में किया.