प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केंद्र में आयोजित ‘ज्ञान पर्व‘ के पांचवे दिन की शुरुआत ‘शोध आलेख कैसे लिखें? विषय पर आयोजित कार्यशाला से हुई. इस सत्र में कार्यशाला की शुरुआत करते हुए विशेषज्ञ डा रमाशंकर सिंह शोध लेखन के कारणों पर प्रकाश डाला. शोध के इतिहास पर बात करते हुए रमाशंकर सिंह ने बताया कि शोध पत्र लिखने के पूर्व किन चीजों का ज्ञान होना चाहिए तथा शोध लेखन में किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए. प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह ने रिसर्च शब्द के इतिहास के बारे में बताया कि पुनर्जागरण या रेनेसां के मध्य ही यह शब्द प्रकट हुआ. उन्होंने बताया रिसर्च नया या अद्वितीय नहीं बल्कि मौलिक होता है. दूसरा सत्र ‘कलाओं के अंतर्संबंध‘ विषय पर परिचर्चा का था. इस सत्र में वक्ता के रूप में प्रो.अजय जैतली, यश मालवीय और डा सूर्यनारायण उपस्थित रहे. इस सत्र का संचालन दीक्षा त्रिपाठी ने किया. तीसरा सत्र ‘दलित विमर्श: आसन्न चुनौतियां‘ विषय पर केंद्रित परिचर्चा का रहा. इस सत्र में डा भूरेलाल ने बताया कि किस प्रकार दलित समाज विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है. डा बिजय रविदास ने कहा कि दलित साहित्य का जन्म जाति व्यवस्था से हुआ है… सवर्णों का एक वर्ग है जो दलित विमर्श को स्वीकार ही नहीं करता है तथा जो वर्ग स्वीकार करता है वह भी दलित साहित्य को सवर्ण जनित मानता है. गुरु प्रसाद मदन ने बताया कि दलित कौन हैं? उन्होंने वैश्विक नेताओं का उदाहरण देते हुए भारतीय दलितों के प्रति धारणा पर अपनी बात रखी और दलित विमर्श पर बात करते हुए शास्त्रों पर चोट की. उन्होंने अंबेडकर के साहित्य को आधार बनाकर दलित विमर्श पर अपने विचार रखे. सत्र का संचालन नीरज विश्वकर्मा ने किया.
ज्ञान पर्व के ‘अदब का शहर इलाहाबाद‘ विषय पर आधारित परिचर्चा सत्र में प्रो हरीश चन्द्र पांडे ने अतीत को याद करते हुए कई बातें कहीं. उन्होंने महादेवी, यशपाल और अन्य साहित्यकारों का स्मरण करते हुए अपनी यादों को सभी के साथ साझा किया. उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ तथा परिमल संस्था का भी जिक्र किया. प्रो आलोक राय ने भी अतीत के कुछ संस्मरणों को याद करते हुए इलाहाबाद शहर के कई साहित्यकारों को याद किया. उन्होंने कहा कि आजादी के पहले हिंदी का केंद्र इलाहाबाद था. प्रो अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपने समय के इलाहाबाद की बात करते हुए उस समय के संस्मरण साझा किये. उन्होंने ग़ालिब की कही बात को साझा किया कि ग़ालिब ने कहा था कि इलाहाबाद बड़ा बेअदब शहर है. लेकिन मेरा कहना है कि कोई भी शहर बेअदब नहीं होता. कोई भी जगह जहां इंसान रहते हैं वो अदब की जगह ही है. उन्होंने कहा कि साहित्य की तीनों धाराओं का संगम भी इलाहाबाद ही है. इस सत्र का संचालन सूर्यनारायण ने किया. ज्ञान पर्व के पांचवे दिन का अंतिम सत्र ‘पौराणिक परंपरा में स्त्रियों का सांपत्तिक अधिकार‘ पुस्तक के लोकार्पण का था. इस पुस्तक के लेखक डा हर्ष कुमार हैं. इस सत्र में चन्द प्रकाश की उपस्थिति उल्लेखनीय रही. डा हर्ष कुमार ने अपनी पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 2007 से लेकर 2014 तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हुए जो इस पुस्तक का आधार बने. इन शोध पत्रों से इस पुस्तक की सम्भावना बनी. उन्होंने रमेश ग्रोवर को पुस्तक प्रकाशन में उनके योगदान के लिए आभार प्रकट किया. इस सत्र का संचालन अनुराधा सिंह ने किया.