प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केंद्र में ‘ज्ञान पर्व‘ के दूसरे दिन ‘अच्छी हिंदी कैसे लिखें?’ विषय पर कार्यशाला; ‘हिंदी व्यंग्य और हरिशंकर परसाई‘, ‘हिंदी की राष्ट्रवादी कविता‘, ‘गांधी और नैतिकता‘ विषय पर परिचर्चा और कहानी पाठ का कार्यक्रम हुआ. ‘अच्छी हिंदी कैसे लिखें?’ सत्र में बतौर विशेषज्ञ डा लक्ष्मण प्रसाद गुप्त ने बच्चों को अच्छी हिंदी लिखने और बोलने के गुर सिखाए और अच्छी हिंदी सीखने हेतु कई महत्त्वपूर्ण किताबों की भी चर्चा की. लगभग दो घंटे चले इस सत्र में स्नातक प्रथम वर्ष के छात्रों से लेकर शोधार्थियों ने हिस्सा लिया. ‘हिंदी व्यंग्य और हरिशंकर परसाई‘ परिचर्चा सत्र में डा चित्तरंजन कुमार ने कहा कि परसाई अपने समाज के सजग लेखक हैं. परसाई को पढ़ते हुए कबीर की याद अकसर आती है. डा दिनेश कुमार ने कहा कि जो स्थान कथा साहित्य में प्रेमचंद का है, कविता में मुक्तिबोध का है वही स्थान व्यंग्य में परसाई जी का है. डा बसंत त्रिपाठी ने कहा कि परसाई एक ऐसा आईना हैं जिसके भीतर हम अपने अंदर की विद्रूपताओं को देख सकते हैं. इस सत्र का संचालन शोधार्थी पुष्पेंद्र ने किया. डा विनम्र सेन सिंह की पुस्तक ‘कलम आज उनकी जय बोल‘ के बहाने हिंदी की राष्ट्रवादी कविता परिचर्चा हुई. जिसमें डा अमरेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि भारत वर्ष को राष्ट्र के रूप में बांधने का काम राजाओं या नेताओं ने नहीं बल्कि साहित्यकारों ने किया.
‘कलम आज उनकी जय बोल‘ भारत वर्ष की विविधता में एकता की अवधारणा से युक्त ऐसी कविताओं का संग्रह है जो युवाओं को भारत और भारतीय स्वाधीनता के महत्त्व को सिखाने का काम करती है. इस अवसर पर डा विनम्र सेन सिंह ने कहा कि बालकृष्ण शर्मा नवीन ने जितना समय अंग्रेजों की जेल में बिताया उतना दूसरा कोई बुद्धिजीवी जेल में नहीं रहा. सुभद्रा कुमारी चौहान झंडा फहराने के जुर्म में गर्भवती होते हुए भी जेल भेज दी गयीं. ऐसे 14 महत्त्वपूर्ण कवियों जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने की हम सभी राष्ट्र प्रेमियों को आवश्यकता है, पर यह पुस्तक आधारित है. अध्यक्षीय वक्तव्य में डा बृजेश कुमार पाण्डेय ने राम प्रसाद बिस्मिल के पत्र के हवाले से कहा कि फांसी के फंदे को देखकर स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देने की शक्ति से ओत प्रोत रचनाकारों को याद करते हुए विनम्र प्रार्थना करते हैं कि हम ऐसे महामानवों की जय बोलें. इस सत्र का संचालन डा सुजीत सिंह ने किया. ‘गांधी और नैतिकता‘ विषय पर संवाद सत्र में वर्धा विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य डा मिथिलेश ने कहा कि गांधी ने जिसको सत्य माना हमेशा उसके साथ अडिग रहे. गांधी का सत्याग्रह आत्मबल, प्रेम बल और न्याय बल की बुनियाद पर अडिग है. इस अवसर पर प्रो वसुधा पाण्डेय ने कहा कि जो लोग अंग्रेजों के खिलाफ घरों से बाहर निकलने से डरते थे गांधी ने उन्हें घरों से बाहर निकाला. उनके अंदर का भय मिटाया. इस सत्र का संचालन शोधार्थी शुभांकर सिंह ने किया. आखिरी सत्र में डा सुनील विक्रम सिंह ने अपनी कहानी ‘तेरी कुड़माई हो गई क्या?’ का पाठ किया और डा गणेशन मिश्र, सोनम राय और डा सौरभ सिंह ने कहानी पर अपनी राय साझा की. याद रहे कि ‘ज्ञान पर्व‘ राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित हो रहा है.