नई दिल्ली: हिंदी के श्रेष्ठ आधुनिक नाटककार रामेश्वर प्रेम नहीं रहे. उनके निधन पर हिंदी साहित्यजगत और रंगमंच से जुड़ी शख्सियतों ने गहरा शोक जताया है. हिंदी अकादमी, दिल्ली के सचिव संजय कुमार गर्ग ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि हिंदी अकादमी दिल्ली रामेश्वर प्रेम के साहित्यिक योगदान का स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है. बिहार के वरिष्ठ नाट्य लेखक हृषिकेश सुलभ ने भी प्रेम कि निधन पर गहरा दुःख जताया है. याद रहे कि रामेश्वर प्रेम का कल रात दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया. उनका जन्म 3 अप्रैल, 1943 को बिहार के भागलपुर, अब सुपोल ज़िले के निर्मली गांव में हुआ था. उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता और लघु उपन्यास से की. उन्होंने 1965 में बिहार विश्वविद्यालय से हिंदी में मास्टर डिग्री प्राप्त की और 1969 में दिल्ली आ गए.उन्होंने केंद्रीय हिंदी निदेशालय में काम किया. बाद में गृह मंत्रालय के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में नियुक्त हुए और 2003 में सहायक निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए. प्रेम 1970 के दशक की शुरुआत में दिल्ली में दिशांतर प्रोडक्शन्स के नाट्याभ्यासों को देखते हुए रंगमंच की ओर आकर्षित हुए. इसी दौरान उनकी शिव ओमपुरी, मोहन महर्षि और राम गोपाल बजाज से मित्रता हुई.
रामेश्वर प्रेम का पहला नाटक ‘अजातघर‘ उनकी ख़ुद की कहानी पर आधारित था. यह नाटक राम गोपाल बजाज के निर्देशन में 1973 को प्रस्तुत किया गया. देश भर के अनेक थियेटर समूहों ने उनके नाटक प्रस्तुत किए. प्रेम के अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं- ‘चारपाई‘, ‘अन्तरंग‘, ‘कैम्प‘, ‘राजा नंगा है‘, ‘जल डमरू बाजे‘, ‘सुपरिमो‘, ‘शास्त्र संतान‘ और ‘कालपात्र‘. प्रेम ने बेन जॉनसन के ‘वोलपोन‘ का हिंदी अनुवाद ‘लोमादवेश‘ किया. उन्होंने कई विदेशी नाटककारों के नाटकों के हिंदी अनुवाद और नाट्य रूपांतरण किए. उनकेकविता-संग्रह ‘बरफ़ की अरणियां‘ और ‘हनिर्गन्धा सुनो‘ काफी चर्चित रहे. प्रेम भारत भवन भोपाल में आवासीय नाटककार भी रहे और रंगमंच के क्षेत्र में अपने कार्य के लिए फोर्ड फाउंडेशन फेलोशिप भी प्राप्त की. हिंदी अकादमी, दिल्ली ने उन्हें 1996-1998 और 2010 में साहित्यिक कृति सम्मान प्रदान किया था. रंगमंच के क्षेत्र में बतौर नाटककार अपने योगदान के लिए वे संगीत नाटक अकादमी सम्मान से भी सम्मानित किए गए थे.