रांचीः “आदिवासी परम्परा बहुत ही सुदृढ़ है. आदिवासी हमेशा से ही तकनीक के मामले में काफ़ी आगे हैं. वे अपना इलाज पुरानी पद्धति से करते हैं. प्रकृति का संरक्षण उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता.” यह बात झारखंड आदिवासी महोत्सव के दौरान वाराणसी की प्रो वंदना चौबे ने कही. वे ‘राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य‘ उत्सव के दूसरे सत्र में ‘समाजशास्त्र, ऐतिहासिक एवं अन्य शोध परख लेखन‘ विषय पर बोल रही थीं. उन्होंने आदिवासियों की वर्तमान स्थिति और भविष्य में उनके विकास की संभावनाओं के बारे में जानकारी दी. ओड़िशा के वरिष्ठ साहित्यकार हेमंत दलपती ने सत्र की अध्यक्षता की. उन्होंने फ़िल्म के माध्यम से आदिवासियों के जीवन स्थितियों के बारे में विस्तार से बताया. इस फिल्म में आदिवासियों की उपेक्षा के बारे में भी बताया गया था.
कश्मीर से आए जान मोहम्मद हाकिम ने कश्मीर की गुर्जर जनजातियों के बारे में जानकारी साझा की. सुल्तानपुर की कवयित्री एवं लेखिका रूपम मिश्र ने आदिवासी स्त्रियों के बारे में जानकारी दी. साहित्यकार अनिल यादव ने कहा कि आदिवासियों के पास प्रकृति एवं समाज की जो जानकारी है, वह बहुत व्यापक है. आदिवासियों की सबसे कीमती चीज़ है, जिसे बचाने की जरूरत है, वह है सामुदायिकता. उन्होंने कहा कि आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति पूजक रहे हैं और प्रकृति को क़रीब से जानते हैं. दिल्ली से आये लेखक-कवि अशोक कुमार पांडेय एवं डा शंभुनाथ और साहित्यकार दिनकर कुमार ने भी अपने विचार रखे. तीसरे सत्र में प्रो वंदना चौबे, रूपम मिश्र, प्रो पार्वती तिर्की, प्रो जसिंता केरकेट्टा ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता एवं उनकी संस्कृति के बारे में प्रकाश डाला. सत्र का संचालन सरोज झा ने किया.