जयपुर: स्थानीय प्रौढ़ शिक्षण समिति सभागार में नंद चतुर्वेदी शताब्दी समारोह की पूर्व घोषित शृंखला का पहला आयोजन हुआ, तो जयपुर के जाने-माने लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, कुलपति, संपादक, राजनेता और पत्रकार उपस्थित हुए. समारोह की अध्यक्षता डॉ हेतु भारद्वाज ने की. तो संचालन अनुराग चतुर्वेदी ने किया. यह आयोजन नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन की ओर से किया गया था. कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं ने एक स्वर से माना की हिंदी की मुख्यधारा के आलोचकों और समीक्षकों ने नंद चतुर्वेदी और उनके जैसे कई प्रतिभाशाली सृजनकारों, कवियों की दशकों तक उपेक्षा की, लेकिन आने वाले समय में नंद चतुर्वेदी और उनके रचनाकर्म का महत्त्व बढ़ता जायेगा. कार्यक्रम में राजस्थान के प्रतिष्ठित साहित्यकारों, पत्रकारों में ओम थानवी, हेमंत शेष, दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, नंद भारद्वाज, राजाराम भादू, फारूक आफ़रीदी, उषा बोथरा आदि उपस्थित थे. सबने नंद बाबू को आत्मीयता से याद किया. इस अवसर पर अनुराग चतुर्वेदी ने बताया कि इस शृंखला के आगामी कार्यक्रम उदयपुर, कोटा, अलवर, दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में भी आयोजित किए जाएंगे.
याद रहे कि नंद चतुर्वेदी जीवन भर समाजवादी विचारों का अध्ययन-अध्यापन करते रहे. वे गांधी, लोहिया और जयप्रकाश की परंपराओं से जुड़े साहित्यकार थे. समता और स्वतंत्रता के पक्षधर चतुर्वेदी गरीबों, भूमिहीनों और ग्रामीणों के बहुत करीब रहे. उनकी कविताएं राजस्थान के सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में कई दशक पहले से लगती रही हैं. नंद बाबू ‘बिंदु‘ पत्रिका के संपादक रहे. ‘शब्द संसार की यायावरी‘ निबंध संग्रह पर उन्हें राजस्थान का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार मिला था. साल 1996 में ‘ये समय मामूली नहीं‘ के लिए उन्हें बिड़ला फाउंडेशन ने बिहारी पुरस्कार दिया था. इसके अलावा भी उन्होंने ढेरों सम्मान पाए थे. उनका अंतिम कविता संग्रह ‘आशा बलवती है राजन‘ था, जिसका मराठी अनुवाद डा गजानन चव्हाण ने किया था. राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने भी कुछ समय पूर्व घोषणा की थी कि हिंदी संसार में राजस्थान का गौरव स्थापित करने वाले दो लेखकों रांगेय राघव और नंद चतुर्वेदी का शताब्दी वर्ष अकादमी उत्साह से मनायेगी. उन्होंने अकादमी की तरफ से ‘शताब्दी गौरव‘ जैसी एक शृंखला प्रारंभ करने का प्रस्ताव रखते हुए सुझाव दिया था कि उदयपुर विश्वविद्यालय को नंद बाबू के नाम पर पीठ स्थापित करनी चाहिए, जिससे उनके साहित्य को आगामी पीढ़ियों तक ले जाया जा सके.