जम्मू: लखनऊ की अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान और अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की लद्दाख प्रांत शाखा ने ‘अनागत कविता आंदोलन: कल और आज’ विषय पर एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया. परिचर्चा में जम्मू के रंगकार राजेश्वर सिंह ‘राजू’, अनागत कविता आंदोलन के प्रेरक-प्रवर्तक और कवि डा अजय प्रसून, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय सूरत की हिंदी विभाग की प्राध्यापिका डा ज्योति सिंह और केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान लेह के हिंदी विभागाध्यक्ष डा राहुल मिश्र ने आनलाइन शिरकत की. डा अजय प्रसून ने अनागत कविता आंदोलन की शुरुआत के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि हम इस आंदोलन से कविता में सकारात्मकता के भाव को स्थापित करने का प्रयास कर रहे, क्योंकि हमारा मानना है कि यदि मानव के जीवन में सकारात्मकता न हो, तो उसके लिए जीवन जीना कठिन हो जाता है.
परिचर्चा में राजेश्वर सिंह ‘राजू’ ने अनागत कविता आंदोलन के बारे में अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि हमारे राज्य में कविता की यह विधा भरपूर मिलती है. उन्होंने जम्मू के कवियों की रचनाओं में अनागत पक्ष के बारे में भी विस्तार से अपनी बात कही.डा सतीश विमल की कविताओं के साथ ही अपनी काव्य-कृति ‘तवी उदास थी’ की कविताओं का उल्लेख करते हुए राजू ने अनागत कविता आंदोलन को सकारात्मक और मानवीय बताया. राजू ने कहा कि हिंदी के साथ ही डोगरी कविता में भी अनागत के पक्ष दिखाई देते हैं. जीवन को जीने के लिए, संकटों और कष्टों को सहते हुए कर्म में लगे रहने के लिए सकारात्मकता का भाव अनागत कविता में दिखता है. राजू ने अपनी कविताएं भी सुनाईं. डा ज्योति सिंह ने अनागत कविता आंदोलन को सनातन परंपरा की जीवन-दृष्टि पर केंद्रित बताया.