कानपुरः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के राजभाषा प्रकोष्ठ और शिवानी केंद्र द्वारा आयोजित ‘गाथा महोत्सव‘ का मुख्य आकर्षण उसका विचार और परिचर्चा सत्र तो था ही, वहां हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने भी कम मन नहीं मोहा. जमील गुलरेज की अगुवाई में मुंबई से आई ‘कथा-कथन‘ की टीम ने मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन‘ का सजीव नाट्य रूपांतरण करके सभी को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया. इसी तरह वाराणसी से आए अमित श्रीवास्तव ने ‘जटायु‘ के जीवन पर आधारित नृत्य नाटिका प्रस्तुत कर सबको सम्मोहित किया. लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी की टीम ने कविता सिंह की अगुवाई में श्रावणी संगीत, कजरी आदि सुनाकर लोगों का मन मोहा, तो कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध कवियों ने कविता में ऐसी बातें कहीं कि लोग मनोरंजन और वाह-वाह के बीच भी सोचने के लिए मजबूर हो गए.
कवि डॉ शिव ओम अंबर ने पढ़ा, ‘स्नेह की संहिता रही है मां, भागवत की कथा रही है मां, इस मुझे चैन से सुलाने को, मुद्दतों रतजगा रही है मां.‘, शायर अजहर इकबाल ने पढ़ा, ‘गुलाब चांदनी रातों पे वार आए हम, तुम्हारे होंठों का सदका उतार आए हम, वो एक झील थी सफ्फाफ नील पानी की, और उस में डूब को खुद को निखार आए हम.‘ सैय्यद नज्म इकबाल ने पढ़ा, ‘जब भी बेटी ने हंसकर दुआएं दी हैं, ऐसा लगा कि फरिश्तों ने अलविदा कहा है.‘ डॉ सर्वेश अस्थाना ने पढ़ा, ‘जग को आंख खोलकर देखा तो हम खुद ही बुद्ध हो गए.‘ कार्यक्रम के दौरान आईआईटी कानपुर के प्रो समीर खांडेकर के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई. कार्यक्रम के दौरान गाथा के सह संस्थापक निदेशक अमित तिवारी, डॉ अल्पना सुहासिनी, प्रो ब्रज भूषण, प्रो कांतेश बलानी, प्रो अर्क वर्मा, प्रो राकेश शुक्ला, श्रवण शुक्ला, विनोद श्रीवास्तव, राधा शाक्य आदि उपस्थित थे.