नई दिल्ली: केंद्रीय साहित्य अकादेमी के पहले अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मिलन में लेखक अनिल कुमार अनेजा ने कहा कि दिव्यांगता से लड़ने के लिए शरीर के अंगों की नहीं बल्कि हौंसले की जरूरत है. पूरे दिन अलग-अलग सत्रों में विभक्त इस सम्मिलन में देश भर से विविध भाषाओं के रचनाकारों ने हिस्सा लिया. उद्घाटन-सत्र के बाद कवि सम्मिलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता विनोद आसुदानी ने की. इस कार्यक्रम में बाङ्ला की सुरभि चटर्जी, बोडो के साहिसुली ब्रह्म, हिंदी की कुसुमलता मलिक, गुजराती के नितिन वी मेहता, कन्नड़ के एस रघुनाथ, खासी के रिलिन गेम्मा लिङ्दोह, पंजाबी के सुखबीर मोहबत तथा उर्दू के मोहम्मद असलम बद्र ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं.
‘मेरी साहित्यिक यात्रा‘ विषयक सत्र की अध्यक्षता अंग्रेज़ी केअनिल कुमार अनेजा ने की. इस सत्र में असमिया के ध्रुव ज्योति दास, मलयाळम् के मारियथ सीएच तथा ओड़िआ के बिराज राउतराय ने अपने-अपने अनुभव प्रस्तुत किए. इन सभी ने कहा कि उन्होंने अपनी दिव्यांगता से उबरने के लिए साहित्य का सहारा लिया जिसके चलते उनका जीवन सहज और सरल होता गया है. सत्र के अध्यक्ष अनिल कुमार अनेजा ने कहा कि इस सम्मिलन से दो बातें बहुत स्पष्ट रूप से समझ में आती हैं कि दिव्यांगता से लड़ने के लिए शरीर के अंगों की नहीं, बल्कि हौसले की जरूरत होती है और जिससे हम भावनाओं के पंख से हासिल कर सकते हैं. दिव्यांग लेखकों की साहित्यिक यात्रा आम रचनाकारों से बिलकुल अलग और विशिष्ट होती है. उन्होंने पूर्व के अनेक दिव्यांग लेखकों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें उन्हें भी प्रकाश में लाने की ज़रूरत है. सम्मिलन का अंतिम सत्र भी कवि सम्मिलन था, जिसकी अध्यक्षता च नागराजु ने की तथा डोगरी के संजय विद्रोही, हिंदी के प्रेम सिंह, कश्मीरी के तौसीफ़ रज़ा, मैथिली के रमाकांत राय रमा, मराठी के चैतन्य डुम्ब्रे, मिज़ो के लालरामपाना, नेपाली के अर्जुन शर्मा, तमिऴ के आर. अभिलाष और तेलुगु के बिल्ला महेंदर ने अपनी रचनाएं पढ़ीं.