अंबिकापुरः छत्तीसगढ़ पेंशनर्स समाज की जिला शाखा अंबिकापुर की ओर से स्थानीय सियान सदन में बुजुर्गों के सम्मान में सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया. आरंभ में अतिथियों ने मां वीणावादिनी की पूजा की और दीप प्रज्ज्वलित किया. लोकगायिका पूर्णिमा पटेल की मनोहरी सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. कवयित्री माधुरी जायसवाल ने सुनाया ‘हे मां, मेरा विश्वास न उठने देना. यदि दुनिया में भय से डर जाऊं, अंधेरों में कहीं सिमट जाऊं, तो बन के रौशनी मुझे राह दिखा देना.’ डॉ पुष्पा सिंह ने सुनाया, ‘दर्द कैसा भी हो दवा अपने हाथ है, बेफिक्र बिंदास हूं मां की दुआ साथ है.’ विनोद हर्ष ने सुनाया, ‘पग-पग पर सुख-दुख का इम्तिहान होता है, तब जाकर कोई शख़्स मुकम्मल सयान होता है.’ रामलाल विश्वकर्मा ने पढ़ा, ‘खाती नहीं ख़ुद पर खिलाती है, रातभर जागकर बच्चों को सुलाती है’. गीतकार पूनम दुबे ने दोहा पढ़ा, ‘सावन पावन है सदा, शिव-गौरी के संग. औघड़दानी नाम है, लिपटे रहे भुजंग.’ अर्चना पाठक ने सुनाया, ‘सत्यम् शिवम् पहचान लो जग है मिथ्या जाल. भक्तों का दुख हर रहे पास न आए काल’. सारिका मिश्रा ने पढ़ा, ‘भोले बाबा को मनाऊं तो मनाऊं कैसे? धाम उनका दूर बहुत है, जाऊं तो जाऊं कैसे?’ गीता दुबे ने ‘ये सावन की बूंदे ख़ुशबू लुटाए, माटी-महक मेरे मन को लुभाए,’ पढ़ा तो बंशीधर लाल ने सुनाया, ‘काले बादल आए, रिमझिम बूंद गिराए, तन की ज्वाला मिटा कर मन में आग लगाए.’ राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने ‘लौट के आया अब के फिर से सावन मस्त बहारों में. हरियाली अब रंग ओढ़ बिखरी है मस्त नज़ारों में’ सुनाकर श्रोताओं का दिल जीता.
कृष्णकांत पाठक ने गीत गाया ‘सबसे प्यारा मेरा घर, जग से न्यारा मेरा घर. जब भी हारा मन से अपने, दिया सहारा मेरा घर.’ संतोष ‘सरल’ ने श्रेष्ठ सरगुजिहा गीत ‘करम के डार नोनी सरना कर पूजा, सबले सुघ्घर एदे हमर सरगुजा…’ सुनाया. उमाकांत पाण्डेय ने पढ़ा, ‘तेरी यादों में खोया, कुछ-कुछ जागा, कुछ-कुछ सोया…’ डॉ सपन सिन्हा ने ‘सदा उपकार करते हैं, कभी नफ़रत नहीं करते, जिनके हांथों में सूरज हो, अंधेरों से नहीं डरते.’ सुनाया तो पूर्णिमा पटेल ने पढ़ा, ‘यूं तकल्लुफ़ से बात करते हो, नश्तरों की तरह गुज़रते हो.’ राजकुमार उपाध्याय ‘मणि’ की ‘ऐ मेरे यारों, पुरानी बातों को छोड़, ज़िंदगी में अब नई बातों को जोड़’, भी खूब सराही गई, तो गीता द्विवेदी की रचना ‘बस स्वप्न देखते व्यतीत हो गया, जिसे भविष्य जाना वो अतीत हो गया.’ सुनाया. अंजू पाण्डेय ने ‘जब हो जाती भोर, निकलूं मैं जंगल की ओर’, तो चंद्रभूषण मिश्र ने ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए साहस का एक संयम ही दे दो’, अजय श्रीवास्तव ने ‘ये दुनिया मुझको तंग करती है…’ तो निर्मल गुप्ता ने ‘बुज़ुर्गों की झुर्रियां और सफेद बाल उनके अनुभवों का भंडार है’ सुनाकर वाहवाही लूटी. आरके द्विवेदी व पूनम देवी की भोजपुरी कविताओं की श्रोताओं ने भरपूर सराहना की. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शायर-ए-शहर यादव विकास ने सुनाया, ‘फिर किसी ने ग़ज़ल सुनाई है, कली गुलशन में खिलखिलाई है.’ अंत में मुकुंदलाल साहू ने ‘सभी सब्ज़ियों में अभी लगी हुई है आग, गूंज उठा बरसात में महंगाई का राग’ दोहा सुनाया. संचालन अर्चना पाठक और आभार हरिशंकर सिंह ने जताया. कार्यक्रम में नगर के कवियों ने अपनी उत्कृष्ट कविताओं का पाठ किया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व बीडीओ आरएन अवस्थी, विशिष्ट अतिथि पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह और जमुनालाल श्रीवास्तव थे. इस अवसर पर पेंशनर्स समाज के जयप्रकाश चौबे, त्रिलोचन यादव, रामखिलावन गुप्ता, एमडी सिंह, नरेन्द्र सिंह, एमएम मेहता, परहंस सिंह, रवीन्द्र तिवारी, नरेन्द्र सिंह, बलराम सिंह, डॉ. जीके अग्रवाल, शशिभूषण कुशवाहा, जीतेन्द्र सिंह, रविभूषण गुप्ता, अश्वनी श्रीवास्तव, आरएस कंवर आदि उपस्थित रहे.