औरैयाः हिंदी उर्दू सभा ने पांच नदियों के ऐतिहासिक महासंगम पंचनद धाम में कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का आयोजन किया, जिसमें दो दर्जन कलमकारों ने काव्य पाठ कर इंसानियत, प्रेमभाव का संदेश गीत, गजल, मुक्तक के जरिए दिया. इस दौरान चंबल के बीहड़ों में ऐतिहासिक तथ्यों की खोज करने वाले चंबल परिवार के कमांडर डॉ शाह आलम राना ने साहित्यसभा के संयोजक शफीकुर्रहमान कशफ़ी, हिंदी सभा के अध्यक्ष डॉ अनुज भदौरिया, उर्दू सभा के अध्यक्ष फरीद अली बशर को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया. पंचनद स्थित पचनदा धाम के महंत सुनीलवन की अध्यक्षता में कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई, और फिर शुरू हुआ गीत, गज़लों का दौर. फ़राज़ खान ने शुरुआत की ‘शरीफ़ आदमी से ज़माना है. लेकिन शरीफ आदमी का ज़माना नहीं है’. दिव्यांशु दिव्य ने सुनाया ‘रोना धोना खुद को खोना बेकार की बातें हैं, नहीं अगर कोई साथ तो भगवान तो होता ही है. कवयित्री इंदु विवेक ने पढ़ा ‘इंसान नही रहता जीवित लेखन ज़िंदा रह जाता है. इंसान स्वयं न कह पाए लेखक वो-वो कह जाता है.’ शायर जावेद कसीम ने पढ़ा, ‘जेब की बुसअतों से जो बाहर हुई, भूख तकती रही रोटियां देर तक’, तो शिखा गर्ग ने पढ़ा, ‘पांव रख दो कठौते में धोलूं प्रभु, गांठें तकदीर की अपनी खोलूं प्रभु.’ नईम ज़िया ने सुनाया, ‘दिलों में इतनी तो गुंजाइशें रहें बाक़ी, कि फासला भी अगर हो तो फासला न लगे’.
संचालक अभिषेक सरल ने पढ़ा, ‘हाथ आया और फिसल गया, एक ख्वाब नींद को ही निगल गया’, तो प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा, ‘हृदय उदगार कविता है, प्रखर उद्गार कविता है, हृदय की ताल पर झूमे वो हर झंकार कविता है’. महासचिव राघवेन्द्र कनकने ने पढ़ा, ‘बारिश के मौसम में छत पर छप छप करना भूल गए, जाने कैसे बचपन हैं ये घर से निकलना भूल गए’. सभा के अध्यक्ष डॉ अनुज भदौरिया ने पढ़ा, ‘बहुत दिनों के बाद मिली वो शीत लिखेंगे, कहां हार के दिल जीता था प्रीत लिखेंगे’. उर्दू सभा के अध्यक्ष फरीद अली बशर ने पढ़ा, ‘जान देकर खरीद पाए हम, लोग कहते हैं मौत सस्ती है.’ साहित्यसभा के ज़िला संयोजक कशफ़ी ने पढ़ा, ‘इस दौर के काबिल से इक बात पूछनी है, बाक़ी भी कुछ बची है औक़ात पूछनी है.’ ब्रह्मप्रकाश ने पढ़ा ‘हो गई बहुत सी क्रांति बस एक क्रांति और लाना है, सहभाव से इंसान में चरित्र क्रांति को जगाना है.’ अतीक खान ने पढ़ा, ‘सोच कर मुझको बताना यार क्या आसान है’, तो इंतखाब दानिश ने पढ़ा, ‘दिखाते दिखाते हर शख्स की सच्चाई दानिश, इक न इक दिन आखिर आईना टूट जाता है’. बुंदेली कवि जगपाल सिंह जगम्मनपुर को माधौगढ़ तहसील साहित्यसभा का प्रभारी नियुक्त किया गया. विजय द्विवेदी, आदिल खान, कल्पना कनकने, कुलदीप परिहार आदि सम्मानित लोग उपस्थित थे.