नई दिल्लीः प्रवासी संसार फाउंडेशन ने ‘फीजी और अन्य गिरमिट देशों में फिल्मों के निर्माण और इससे संबंधित चुनौतियां’ विषय पर एक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें फीजी मूल के भारतवंशी ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार डॉ सतीश राय से मीडिया एवं नाट्य कर्मी डॉ रमा पाण्डेय तथा जाने-माने पत्रकार रवींद्र त्रिपाठी ने संवाद किया. कार्यक्रम में डॉ सतीश राय की पुस्तक ‘रोमांस विद् सिनेमा’ का लोकार्पण भी हुआ. प्रवासी संसार फाउंडेशन के न्यासी और संपादक राकेश पाण्डेय ने विषय की प्रस्तावना में कहा कि सभी गिरमिटिया देशों में भारतीय सिनेमा अत्यंत लोकप्रिय है, लेकिन वहां हिंदी सिनेमा के निर्माण का प्रयास सफल नहीं हो पाया. डॉ राय से इसका कारण जानना है. कार्यक्रम का प्रारंभ नागेश्वर लाल कर्ण और भारत, तंजानिया आदि देशों के उनके शिष्यों द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना तथा तबला वादन से हुआ. डॉ पाण्डेय और त्रिपाठी ने डॉ राय के व्यक्तित्व और कृतित्व से संबंधित अनेक प्रश्न पूछे. डॉ राय ने बताया कि अब हिंदी भाषी सिनेमा की किश्ती बड़ी कमजोर होती जा रही है, क्योंकि हर नयी पीढ़ी के साथ गिरमिटिया संस्कृति का अपनी मूल जमीन से जुड़ाव कम से कमतर होता जा रहा है. दूसरा पैसे की कमी ने गिरमिटिया संस्कृति की चेतना और शोध पर गहरा असर डाला है. आज गिरमिटिया सिनेमा को संरक्षण की सख्त जरूरत है.
संवाद के क्रम में डॉ राय ने बताया कि उन्होंने गिरमिट के इतिहास और अन्य कई विषयों पर कई पुस्तकें लिखी हैं, अनेक फिल्में और डॉक्यूमेंट्री बनाई है. उनकी फिल्में और डॉक्यूमेंट्री उनके यू ट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं. लेकिन अब समर्पित एवं अनुभवी फिल्मकारों की अत्यंत कमी है. इसलिए ऐसे प्रयास किए जाने की आवश्यकता है कि गिरमिट देशों में फीचर फिल्में और डॉक्युमेंट्री बनाने में सुविधा मिले और उनको भारत सहित अन्य गिरमिट देशों में प्रदर्शित किया जाए. इस संबंध में भारतीय फिल्म उद्योग, भारत सरकार और अन्य गिरमिट देशों में फिल्म निर्माण के लिए आर्थिक और अन्य सहयोग स्थापित करने के लिए विभिन्न स्तरों और व्यक्तियों, संस्थाओं के द्वारा निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. ख़ासकर फीजी की भौगोलिक स्थिति फिल्मों के निर्माण के लिए अत्यंत अनुकूल है. फीजी में द्वितीय सचिव हिंदी और संस्कृति और भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के कार्यकारी निदेशक रहे डॉ शरद कुमार ने कहा कि फीजी में स्थानीय रूप से निर्मित हिंदी फिल्मों का इतिहास लगभग दो दशक पुराना है. फीजी संभवतः एक मात्र प्रवासी भारतीय देश है जहां फिल्म निर्माण की परंपरा बहुत पुरानी है. फीजी की पहली हिंदी फिल्म ‘कलंक’ पहली फीचर फिल्म भी थी. इसके बाद ‘अधूरा सपना’, ‘हाईवे टू सुवा’, ‘बक अप मंडली’, ‘अनलिमिटेड तमाशा’ जैसी फिल्में बनीं. वर्ष 2009-2012 के बीच की अवधि में फीजी नेशनल यूनिवर्सिटी में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् और भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा एक फिल्म प्रोडक्शन पीठ भी स्थापित हुआ. निर्देशक प्रकाश झा ने फीजी की यात्रा की. इसके फलस्वरूप फीजी में ‘टेबल 21’, ‘पार्टी’, ‘3जी’, ‘वार्निंग’ और तमिल फिल्म ‘अम्मली तुम्मली’ की शूटिंग भी सुवा, सिगटोका, दिनराऊ द्वीप, लंबासा में हुई.
स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, भारत सरकार के निदेशक रहे संतोष मिश्रा ने कहा कि भारतीय और गिरमिट देशों की संस्कृति और जन जीवन को एक-दूसरे से जोड़े रखने के सशक्त माध्यम होने और गिरमिट देशों में फिल्म निर्माण की असीम संभावनाओं के बावजूद इन देशों में फिल्म उद्योग की स्थिति अत्यंत दयनीय है. प्रवासी संसार की यह पहल निकट भविष्य में भारत, फीजी तथा अन्य गिरमिट देशों में सार्थक एवं सफल फिल्मों के निर्माण के रास्ते तलाशने में मददगार साबित होगी. प्रवासी संसार फाउंडेशन ने डॉक्टर सतीश राय को ‘विशिष्ट प्रवासी लेखन सम्मान’ से सम्मानित किया. नाट्य संस्था रत्नव की ओर से रमा पाण्डेय और उनकी टीम ने भी डॉक्टर सतीश राय को सम्मानित किया. कार्यक्रम में लंदन में हिंदी और संस्कृति अधिकारी रहे डॉक्टर राकेश बी दुबे, भारतीय संसद के वरिष्ठ अधिकारी मशहूर शायर पी शिवकुमार बिलगरामी, सिनेमाकर्मी असलम ख़ान, बलराम अग्रवाल, कवि और लेखक कमलेश भट्ट कमल, वी के शेखर, आसिफ आज़मी, सुनील कांत मिश्रा, अमेरिका से पधारी लेखिका मीरा सिंह, प्रो दर्शन पाण्डेय, गीता पाण्डेय, कवयित्री वीणा मित्तल, आभा चौधरी सहित अनेक गणमान्य उपस्थित थे. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक नारायण कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया.