शिमला: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज शिमला ने ‘भारत में संत और आचार्य परंपरा’ पर एक व्याख्यान आयोजित किया, जिसके मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल थे. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राचीन काल में भारत तकनीकी, व्यापार, कला, संगीत और साहित्य में अग्रणी था. इसका लोहा विश्व भी मानता है, लेकिन इस सभी के मूल में यहां के संत आचार्य और गुरु रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक बार भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ओमान की यात्रा पर गए. वहां के सुल्तान का बेटा उनका शिष्य था. उसे जानकारी मिली, तो वह बहुत अभिभूत हुआ कि मेरे गुरु आ रहे हैं. अधिकारियों के प्रोटोकॉल को दरकिनार कर सुल्तान के पुत्र ने उनकी पूरी व्यवस्था की. उसने कहा कि मैं भारत में पढ़ा हूं, मुझे पता है कि भारत में शिष्य अपने गुरु का कितना सम्मान करते हैं, इसलिए मैं भी यही करुंगा. गुरु का महत्त्व ऐसे समझिए कि महर्षि कण्व के आश्रम में शिक्षा लेने वाला शिष्य भी राजा दुष्यंत को कहता है कि आश्रम के आसपास हिरण को कोई मार नहीं सकता, ‘आश्रमस्य मृगोयं किमपि न हन्तव्यं’ काशी के शिलालेख कहते हैं कि ‘इदं अपि न तिष्ठेत्.’ 1942 के असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी यह जानते थे कि मालवीय जी के शिष्य मेरी बात नहीं मानेंगे उन्हीं की बात मानेंगे.
इलाहाबाद विवि के एक आचार्य का अपने दायित्व के प्रति कितना दृढ़ विश्वास था कि वह गृहमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत के आदेश को भी यह कहते हुए इनकार कर देता है कि मैं इस्तीफा दे दूंगा लेकिन किसी राजनेता को यहां की शिक्षा व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं दूंगा. उन्होंने प्राचीन काल, मध्य काल और आधुनिक काल के गुरु आर्यभट्ट, आचार्य चाणक्य, महर्षि वाल्मीकि नागार्जुन, घोषा, गार्गी, अपाला, सौनक ऋषि और अंगिरा, गुरु रविदास, नानक, कबीर,, महर्षि अरविंद, आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी श्रद्धानंद, महामना मालवीय, जेके मेहता, महेश चंद्र, आत्माराम, 95 वर्षीय मुसलगांवकर, डॉ सुब्रहमण्यम् शास्त्री आदि महान गुरुओं और आचार्यों द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों के विषय में प्रेरक जानकारी दीं. उन्होंने डॉ अंबेडकर के गुरु पेंडसे द्वारा निर्धन शिष्य भीमराव के लिए विद्यालय में प्रतिदिन भोजन लाने का मार्मिक उदाहरण दिया. डॉ कृष्ण गोपाल ने पश्चिमी विद्वान बर्ट्रेंड रसेल का भी उद्धरण दिया और कहा कि सभ्यताओं के संघर्ष का समाधान भी भारत ही कर सकता है, लेकिन इसका संपूर्ण समाधान भारतीय संत, गुरु, आचार्यों द्वारा दिखाए गए मार्ग से ही निकलेगा. उन्होंने आह्वान किया कि संस्थान के फेलो और आचार्य भी इन विषयों को अपने जीवन में उतारेंगे तो भारत का भाग्य बदलना निश्चित है. व्याख्यान में संस्थान के पूर्व अध्यक्ष और पद्म भूषण से सम्मानित प्रो कपिल कपूर, वर्तमान अध्यक्ष प्रो शशि प्रभा कुमार, संस्थान के निदेशक प्रो नागेश्वर राव और विभिन्न फेलो सहित शिमला शहर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे.