देवघर: द्विवेदी युगीन साहित्यकार गिरिधर शर्मा नवरत्न की जयंती पर उन्हें याद किया गया. बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के पूर्व प्रवक्ता अजय कुमार ने इस अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके कृतित्व को याद किया. उन्होंने कहा कि नवरत्न हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग के एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जो न केवल साहित्यकार थे, अपितु एक सफल अनुवादक और हिंदी के उत्थान में स्वयं को होम कर देने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त थे. अपने लेखन से उन्होंने समाज और राष्ट्र की कई चेतना को मन से छुआ, जिनसे आत्मोत्सर्ग, स्वतंत्रता और देशभक्ति के भाव मुखरित हुए. 1915 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भारत माता की वंदना की ऐसी सुंदर और मौलिक प्रस्तुति दी, जिसे अमर कहा जा सकता है. उसे हिंदी साहित्य का प्रथम राष्ट्रगीत भी माना गया था. 1918 में इंदौर में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में उनके द्वारा रचित एक ऐसा सुंदर राष्ट्रगान प्रस्तुत किया गया था, जिसमें भारत के सांस्कृतिक वैभव का स्वर्णिम चित्र था. उनके द्वारा लिखी गई वह रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. जितनी आज से 88 वर्ष पूर्व उस समय के भावों से भर कर लिखी गई थी.
याद रहे कि गिरिधर शर्मा नवरत्न का जन्म 6 जून, 1881 को राजस्थान के झालरापाटन में हुआ. सन 1906 में उन्होंने राजपूताना से ‘विद्या भास्कर’ नामक मासिक पत्र निकाला था. सन 1912 ई में गिरिधर शर्मा ने झालरापाटन में श्री राजपूताना हिंदी साहित्य सभा की स्थापना की, जिसके संरक्षक झालावाड़ नरेश भवानी सिंह बने. इस सभा का उद्देश्य ‘हिंदी-भाषा की हर तरह से उन्नति करना और हिंदी भाषा में व्यापार, वाणिज्य, कला, कौशल, इतिहास, विज्ञान, वैद्यक, अर्थशास्त्र, समाज, नीति, राजनीति, पुरातत्व, साहित्य आदि विविध विषयों पर अच्छे ग्रंथ तैयार करना और सस्ते मूल्य पर बेचना था.’ गिरिधर शर्मा ने सन 1912 में ही भरतपुर में हिंदी साहित्य समिति की स्थापना करके वहां के कार्यकर्ताओं को भी हिंदी भाषा की श्रीवृद्धि, प्रसार और साहित्य संवर्धन का कार्य सौंपा. सन 1914 में उन्होंने इंदौर में मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति की स्थापना की और उसके बाद वे बम्बई चले गए. सन 1935 में वे श्री भारतेन्दु समिति कोटा के अध्यक्ष बने. वहीं उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई, जहां उन्होंने उनसे राष्ट्रभाषा हिंदी की समृद्धि का मंत्र दिया. कहते हैं इसी मुलाकात के परिणामस्वरूप अगले ही वर्ष लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में देश की राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की प्राथमिकता घोषित कर दी गयी.