दतियाः फर्क क्या है यही कि तुमने शोहरतें पढ़ी हैं, और मैंने पीड़ा की अनकही कहानी. कविता के माध्यम से संवेदना और वर्तमान की हकीकत बयान करती ये पक्तियां युवा कवि भुवनेश्वर उपाध्याय की हैं. वे इलाके के श्रीकृष्ण हाईस्कूल में आयोजित कविता-गोष्ठी में उपस्थित थे. सनकादिक साहित्य मंडल के तत्वाधान में आयोजित इस मासिक कविता-गोष्ठी के दौरान युवा एवं वरिष्ठ कवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और एक से बढ़कर एक रचनाएं पढ़ीं. कार्यक्रम का आरंभ अतिथियों द्वारा वीर सावरकर के चित्र पर माल्यार्पण कर हुआ. फिर डॉ राजू विश्वकर्मा ने शुरुआत की. उनकी कविता की बानगी देखें, ‘ग़ैर की राह में फूलों को बिछाता जो रहा, हैं मिले खार उसे उसके बिछौने के लिए.’ इसके बाद युवा कवि नरेंद्र मित्तल ने जो हास्य व्यंग्य कविता पढ़ी, उसकी बानगी इस तरह है, ‘सासें बैठीं मूड़ ढाक कें, बहुयें फिरे उघारीं. जो कौन जमानो आ गओ है, हे मोहन गिरधारी.’
इस दौरान शासकीय कन्या इंटर कालेज के प्राचार्य डॉ कमलेश प्रजापति ने जो व्यंग्य सुनाया उसकी बानगी थी, ‘दोस्ती की रस्मों को अब नहीं निभाते हैं, जब निकल गया मतलब सब छोड़ जाते हैं.’ सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पुजारी की कविता यों थी, ‘कोई शिखंडी कहता है उनको कोई सावरकर पर उंगली उठाता है, सूरज को जुगनू दिखाने से उसका तेज कम नहीं हो जाता है’. युवा कवि प्रमोद बघेल यह देशभक्ति कविता पढ़ी, जिसके बोल थे, ‘न हिंदू न मुस्लिम हम तो, नहीं सिख ईसाई हम तो, जाति धर्म से हम अनजान, देश महान मेरा देश महान.’ आयोजन समिति प्रमुख प्रमोद बघेल ने कविता गोष्ठी के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद गुप्ता, विशिष्ट अतिथि साहित्यकार डॉ अवध बिहारी पाठक एवं डॉ श्याम बिहारी श्रीवास्तव का स्वागत एवं सम्मान किया. संचालन निरंजन दत्त जानू ने और आभार प्रदर्शन संस्था के प्रमुख पं महेश दीक्षित ने किया. इस अवसर पर प्रकाश जाटव, राकेश श्रीवास्तव, हिमांशु परिहार ने भी कविता-पाठ किया.