मुजफ्फरपुरः स्थानीय श्री नवयुवक समिति सभागार में नटवर साहित्य परिषद की ओर से मासिक कवि सम्मेलन सह मुशायरा का आयोजन किया गया. कवि सम्मेलन की शुरुआत आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के गीत से की गई. उसके बाद गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने ‘प्रतिकूल हवा से टकराना कोई खेल नहीं’ कविता सुनाकर भरपूर तालियां बटोरी. डॉ सिबगतुल्लाह हमीदी ने ‘पैर मां का दबा गया कोई, अपनी जन्नत लिखा गया कोई…’ सुनाकर दाद बटोरी, तो कवि डॉ नर्मदेश्वर ने ‘जमाने को अपनी खबर लग गई है, मुहब्बत पे सबकी नजर लग गई है… ‘सुनाकर भरपूर तालियां बटोरीं. अगले कवि डॉ लोकनाथ मिश्र ने सुनाया ‘उड़ता-उड़ता वह सूखा पत्ता चलती बस में आ पहुंचा मेरी गोद में…’ तो रामउचित पासवान ने ‘लगता नहीं कहीं है दिल शयदा तेरे बगैर’ सुनाया. सविता राज ने ‘संरक्षित हो पर्यावरण, सुरक्षित रहे धरणी, कलुषित न हो तरनी, हो वृक्षारोपण, रहे हरियाली…’ कविता सुनाई, वहीं अशोक भारती ने ‘एक कहानी रह गयी उस नौजवान की, छोड़कर एक निशानी भारत के शान की…’ कविता सुनाई.
डॉ जगदीश शर्मा ने ‘चल रही गरम हवाओं के झोंकों का मुख मोड़ दो , हवा जो बहकर आज आ रही, उन्हीं के हवाले छोड़ दो… ‘ सुनाकर तालियां बटोरी. सुमन कुमार मिश्र ने ‘बिस्तर पर बीमार खांसती मां मेरे हिस्से में आई’, रामबृक्ष राम चकपुरी ने ‘हीरा घर में रखकर, बाहर पत्थर चुनने निकला’, प्रो डॉ पुष्पा गुप्ता ने ‘बोलो गंगा की जय, गंगा मैया की जय, विष्णु के नख से निकली शिव की जटा समायी’ सुनाई. शशि रंजन वर्मा ने बज्जिका गीत ‘आऊं-आऊं हे सखी तनिका हमरो घर इजोर करूं’, तो सत्येन्द्र कुमार सत्येन ने भोजपुरी में ‘नदियां के पार ही उतार हो मलहा भइया, पार उतरनी रहब सोनमा के हार हो मलहा भइया’ सुनाकर सुनाकर लोक भाषा को गरिमा देने की कोशिश की. विजय शंकर प्रसाद ने ‘किस आत्मा पर करूं बात, किस महात्मा को करूं आत्मसात’ सुनाया, तो दीन बंधु आजाद ने ‘बेहतर से बेहतर की तलाश करो, मिल जाए नदी तो समन्दर की तलाश करो’ सुनाकर तालियां बटोरी. ओम प्रकाश गुप्ता ने ‘कहीं और बनाये चलो, दूर आशियां’ सुनाई तो अरुण कुमार तुलसी ने ‘है जगत की रीत निराली, समरथ को सब देते ताली’ सुनाई. मोहन कुमार सिंह ने ‘मां बिन जगत की कल्पना अधूरी है, मां है तो सब मनोकामना पूरी है’ सुनाया, तो अंजनी कुमार पाठक ने ‘याद आती है पुरानी बातें, ये खामोशी ये तन्हाई है डरावनी रातें’ सुनाकर तालियां बटोरी. सुनील ओझा, रिद्धि मोहन, संतोष कुमार सिंह की रचना भी सराही गई.