पालमपुर: रचना साहित्य एवं कला मंच पालमपुर ने भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश के सहयोग से हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय परिसर में साहित्यिक सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन की यह विशेषता रही कि इस दौरान साहित्यकार संतराम वत्स्य को भी गंभीरता से याद किया गया. यह उनका शताब्दी वर्ष है. इस अवसर पर डॉ सुशील कुमार फुल्ल ने साहित्यकार संतराम वत्स्य की शती वर्षगांठ पर एक आलेख पढ़ा. उन्होंने वत्स्य की साहित्यिक मेधा और उनकी पुस्तकों को याद करते हुए बताया कि पंडित संतराम वत्स्य बाल साहित्यकार, दार्शनिक, निबंधकार, कवि, दर्शन और आध्यात्म के ज्ञाता और समाज-सेवी थे. उन्होंने 138 पुस्तकों का सृजन किया, जिनकी सबसे खास बात यह रही कि ये सभी पुस्तकें बड़े प्रकाशकों के यहां से प्रकाशित हुई. वत्स्य धनीरी गांव पालमपुर तहसील के रहने वाले थे.
फुल्ल ने कहा कि वत्स्य की रचनाओं में समय और समाज की कुरीतियां भी दिखाई देती थीं. जैसे उनके एक पत्र में एक समकालीन साहित्यिक समस्या पर भी ध्यान आकर्षित किया गया था, जो थी अपना पैसा लगा कर तुरंत पुस्तक प्रकाशित करवाने की प्रवृत्ति. इसे वह लेखकों के स्तर में गिरावट का कारण मानते थे. उन्होंने परामर्श दिया था कि परिपक्व रचनाओं को ही प्रकाशित करना, करवाना चाहिए अन्यथा लेखकों की अहमियत घट जाएगी, जैसा आजकल देखने को मिलने लगा है. कार्यक्रम में लेखक डॉडीसी चम्बयाल, डॉ. जयनाराण कश्यप, डॉ गंगाराम राजी, डॉ आशु फुल्ल, कुध्ण महादेविया, अरविंद शर्मा, मनोज धीमान, रजनीश, प्रभात, सरोज परमार,रमेश मस्ताना, डॉ प्रत्यूष गुलेरी, कमलेश सूद, सुरेशलता अवस्थी, शक्तिचंद आदि उपस्थित थे. विभागीय अधिकारी उपनिदेशक अलका कैंथला, भाषा अधिकारी सरोज नरवाल, विपिन तथा कांगड़ा जिला के भाषा अधिकारी अमित गुलेरी भी उपस्थित थे.