कोलकाता: सियालदह के मंथन सभागार में निर्मला तोदी के कहानी संग्रह ‘रिश्तों के शहर’ एवं कविता संग्रह ‘यह यात्रा मेरी है’ का लोकार्पण सह परिचर्चा हुई. लोकार्पण रवि भूषण, डॉ शंभुनाथ, गोपेश्वर सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल, वेदरमण, यतीश कुमार, गीता दुबे, निशांत, किशन तोदी और रेनु छोटारिया द्वारा सम्पन्न हुआ. नीलांबर के अध्यक्ष यतीश कुमार के स्वागत वक्तव्य के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. कहानी संग्रह ‘रिश्तों के सफर’ पर गीता दुबे ने कहा कि स्त्री लेखन एवं पुरुष लेखन अलग-अलग होता है. स्त्री के पास अपने अनुभव और अपने ‘टूल्स’ होते हैं. ‘रिश्तों के शहर’ की कहानियों में आधुनिक जीवन, रिश्ते और परिवार की विडंबनाओं को हम देख पाते हैं. आलोचक वेदरमण ने कहा कि निर्मला तोदी ने कथा एवं कविता दोनों में अपनी पहचान बनाई है. कोई कथा हमें वहां ले जाए जहां पहले कोई और न ले गया हो तो यह उस कहानी की सफलता है. तोदी की कुछ कहानियों में यह गुण है. आलोचक रवि भूषण ने कहा कि निर्मला तोदी की कहानियों में दुर्लभ किस्म के संकेत हैं जो उन्हें संभावनाशील कथाकार बनाते हैं. इस सत्र का संचालन कवि निशांत ने किया. नीलांबर की उपसचिव स्मिता गोयल ने संग्रह की एक कहानी का अंश पाठ भी किया.
दूसरे सत्र का आरंभ नीलांबर की टीम द्वारा कविता कोलाज की प्रस्तुति से हुई. इसमें हावड़ा नवज्योति के बच्चों ने सहयोग किया. इसमें हिस्सा लेने वाले कलाकारों में शामिल थे अपराजिता विनय, आरती सेठ, तनिष्का सेन गुप्ता, सिमरन समीम, सरिता शर्मा, लक्ष्मी सिंह, ज्योति भारती, निशु जैसवाल, वैशाली साव एवं प्राची सिंह. इस कोलाज का निर्देशन किया था दीपक ठाकुर ने. इसमें तोदी के कविता संग्रह ‘यह यात्रा मेरी है’ पर परिचर्चा-सत्र में आलोचक डॉ शंभुनाथ ने कहा कि कवियों से ही साहित्य जगत हरा-भरा है. तोदी की कविताओं के केंद्र में प्रकृति, स्मृति और संबंध हैं. सत्ता जिन सच्चाइयों को बहिष्कृत करती हैं, वे कविता में सांस लेती हैं. कवि यतीश कुमार ने कहा कि तोदी की कविता में खिड़की का बार-बार आना कोई साधारण घटना नहीं है. बंद खिड़की खोलने की बात कहना बग़ावत करना है, जिस टूल की ज़रूरत समाज के हर अपेक्षित वर्ग को है. कवि एवं आलोचक श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि कवि होना एक जिम्मेदार नागरिक होना है. निर्मला तोदी की कविताओं में संवेदनशीलता और स्त्री जीवन का हाहाकार है. विशेष अतिथि आलोचक गोपेश्वर सिंह ने निर्मला तोदी की रचनाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें हिंदी की एक संभावनाशील कथाकार बताया. अपने लेखकीय वक्तव्य में निर्मला तोदी ने कहा कि सिर्फ सहन करते रहना हमारी आत्मशक्ति और ‘आइडेंटिटी’ को खत्म कर देता है. मेरी कहानियों की नायिकाएं उस सीमा रेखा को अच्छी तरह पहचानती हैं. इस सत्र का संचालन युवा कवयित्री रचना सरन ने किया. नीलांबर के उपसचिव आनंद गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम के तकनीकी पक्ष में मनोज झा, विशाल पांडेय और अभिषेक पांडेय ने सहयोग किया. शहर के साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को जीवंत बनाया.