उदयपुर: अपने लोगों की स्मृतियों को बचाना जरूरी काम है क्योंकि इससे न केवल हम अपनी परंपरा को सुरक्षित रख पाते हैं बल्कि हमें आगे सही रास्ता खोजने में भी मदद मिलती है. राजनेता जहां जनता से शक्ति लेते हैं वहीं लेखक जनता को शक्ति प्रदान करते हैं.” यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत का. वह स्थानीय सूचना केंद्र सभागार में राजस्थान साहित्य अकादमी तथा आलम शाह खान यादगार समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे. उद्घाटन सत्र में व्यंग्यकार फारुक आफरीदी ने कहा कि डॉ आलम शाह खान समाज के गरीब, पिछड़े, मजदूर और महिला वर्ग की चिंताओं और तकलीफों के चितेरे कथाकार थे. डॉ खान ने मानव अधिकारों के हनन को लेकर अपनी कहानियां लिखी और मजलूम, बेजूबान और हाशिये के समाज के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाया. लेखक प्रबोध कुमार गोविल ने कहा कि डॉ आलम शाह खान का नाम उनके लिए आकर्षण था, शाह साहब की कई कहानियां पढ़ी, उनकी कहानियों पर मजबूत पकड़ थी. उनके साहित्य पर लंबे समय पर चर्चा होती रहेगी. गोविंद माथुर ने कहा कि राजस्थान के लेखकों में शाह की चर्चा अधिक नहीं हुई, डॉ आलम शाह खान सर्वहारा वर्ग की कहानियां लिखते थे, उनकी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए. साहित्य अकादमी और अन्य संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए.
जानेमाने लेखक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि डॉ आलम शाह खान का कबीराना अंदाज गजब का था. वे स्पष्टवादी एवं निर्भीकता के प्रतीक थे. उनके चरित्र में दोहरापन नहीं था. वे विद्रोही प्रवृति के लेखक थे. उर्दू अफसानानिगार डॉ सरवत खान ने कहा कि शाह की कहानियां आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी और हमेशा प्रासांगिक रहेंगी. किशन दाधीच ने कहा कि शाह पर संस्मरणों की किताब आनी चाहिए. वे खुद्दारी के सिपहसालार थे. दूसरे सत्र में खान के शिष्य और वरिष्ठ आलोचक प्रो माधव हाड़ा ने वंश भास्कर और वचनिकाओं पर लिखी उनकी शोध-आलोचना की चर्चा की. आलोचक पल्लव ने समांतर कहानी आंदोलन की चर्चा करते हुए उसमें खान की कहानियों की विशिष्टता को रेखांकित किया. तृतीय सत्र की अध्यक्षता राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ दुलाराम सहारण ने की. उन्होंने कहा कि अकादमी राजस्थान के पुरोधाओं के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करेगी. सत्र के मुख्य वक्ता भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक डॉक्टर लईक हुसैन ने डॉ आलम शाह खान की चर्चित कहानी ‘मौत का मजहब’ की प्रस्तुति के विविध पक्षों की चर्चा की. रंगकर्मी सुनील टाक ने आलम शाह खान की कहानियों के नाट्य रूपांतरण एवं लघु फिल्म निर्माण की संभावनाओं की चर्चा की. इस सत्र का संचालन प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया ने किया. सत्र के अंत में डॉक्टर तबस्सुम खान एवं समिति अध्यक्ष आबिद अदीब ने धन्यवाद ज्ञापित किया. भारतीय लोक कला मंडल में कविराज लाइक हुसैन के निर्देशन में आलम शाह खान की कहानी ‘मौत का मजहब’ का मंचन लोक कला मंडल के खुले प्रांगण में हुआ.
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
This message and the attachment(s) hereto, if any, (hereinafter referred to as “the information”) is confidential and privileged communication intended solely for the use of the individual or entity that it is addressed and others authorized to receive it. The disclosure, distribution, copying, or re-use of the information or any content thereof, without express authorization is strictly prohibited. If you have received this message in error, please advise the sender by return e-mail at emailadmin@jagran.com and delete the message from your system.
Although the company has taken reasonable precautions to ensure no viruses are present in this email, the company cannot accept responsibility for any loss or damage arising from the use of this email or attachments. E-mail transmission cannot be guaranteed to be secure or error-free as information could be intercepted, corrupted, lost, destroyed, arrive late or incomplete, or contain viruses.