बदायूं: समर्थ काव्य समिति दहेमी ने दुनिया भर में मई के दूसरे रविवार को मनाए जाने वाले ‘मातृ दिवस’ के अवसर पर मां को समर्पित एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया. गोष्ठी की अध्यक्षता कवि कामेश पाठक ने की. कार्यक्रम में कवयित्री सरिता चौहान को सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम का प्रारम्भ मां शारदे के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित और पुष्प अर्पित कर किया गया. सरिता चौहान ने सरस्वती वंदना पढ़ी. इसके पश्चात कवि-गोष्ठी का विधिवत आरंभ हुआ. उज्ज्वल वशिष्ठ ने जो गजल पढ़ी, उसकी इस शायरी को सबने सराहा- ‘हकीकत में हमें भी तीरगी अच्छी नहीं लगती, मगर इसके बिना फिर रोशनी अच्छी नहीं लगती’. गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कामेश पाठक ने पढ़ा, ‘दिया है तन हमें जिसने बलि उस तन की देकर भी, मां का कर्ज धरती पर चुका सकता नहीं कोई.’ युवा कवि अचिन मासूम ने पढ़ा, ‘कभी गर्दिश में भी उसका सितारा जा नहीं सकता, मां दे आशीष तो रब से भी टाला जा नहीं सकता, हमें मां ने हमारी दूध का अमृत पिलाया है, यह वो कर्जा है जो हरगिज़ उतारा जा नहीं सकता.’

गोष्ठी के दौरान सम्मानित कवयित्री सरिता चौहान ने पढ़ा, ‘शब्दों में लिख दूं मां को ये कैसे सम्भव, वात्सल्य को कह पाऊं ये कैसे सम्भव ईश्वर की प्रतिमूर्ति करूं मैं तुझको वंदन, हे! मातु तेरे कारण है मेरा जीवन मधुवन.’ सुनील शर्मा समर्थ ने पढ़ा, ‘मां तो सारे जग में अनूप होती है, क्षमा ममता दया का स्वरूप होती है. मां से सुंदर मूरत कोई न दुनिया में, मां तो शाश्वत ईश्वर का रूप होती है.’ शैलेन्द्र मिश्र देव ने पढ़ा, ‘आज के पल कुछ दिनों में याद में रह जाएंगे, फिर खयालों में खुशी या गम के जैसे आयेंगे.’ ललितेश ने पढ़ा, ‘छोड़के अपना गांव अपना चमन चल दिए साथियों हम वतन के लिए, रहे देश सलामत रहें आप सलामत चल दिए हम तुम्हारे अमन के लिए.’ कार्यक्रम का संचालन कवि सुनील समर्थ ने किया. जुनैद सकलेनी ने भी काव्य पाठ किया. आयोजक शैलेन्द्र मिश्र देव ने सभी का आभार प्रकट किया. गोष्ठी में पुष्पेंद्र शर्मा, तरुण सैनी, अवधेश पाठक, बासुदेव सहित कविता प्रेमियों की उपस्थिति सराहनीय रही.