नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने रवींद्रनाथ टैगोर की 162वीं जयंती पर ‘अनुवादों में रवींद्रनाथ टैगोर की प्राप्ति विषयक’ परिसंवाद आयोजित किया. मालाश्री लाल की अध्यक्षता में संपन्न इस परिसंवाद में उर्दू के फ़ेह सीन एजाज़, कन्नड़ के एचएस शिवप्रकाश, पंजाबी के मोहनजीत, हिंदी के प्रयाग शुक्ल एवं अंग्रेजी के राधा चक्रवर्ती ने टैगोर की कृतियों के अनुवाद से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया. प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् से सभी का स्वागत किया और कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर भविष्यदृष्टा मानवतावादी थे. उनका लेखन सार्वभौमिक था. साहित्य अकादमी ने उनकी अनेक रचनाओं का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाया है. फ़ेह सीन एजाज ने रवींद्रनाथ टैगोर के उस वक्तव्य का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था ‘मैं मृत्यु के बाद भी अपने गीतों में जिंदा रहूंगा’. उन्होंने उनके गीतों में प्रकृति, प्रेम, स्वदेश आदि तत्त्वों के मिश्रण का उल्लेख करते हुए अपने द्वारा उर्दू में अनूदित कई गीतों को प्रस्तुत किया.
एचएस शिवप्रकाश ने कन्नड़ में हुए टैगोर के अनुवादों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके गीतों में मन के आजादी की जो बात कही गई है वो सबसे ज्यादा प्रभावित करती है. मोहनजीत सिंह ने टैगोर द्वारा बलराज साहनी को पंजाबी में लिखने के लिए प्रोत्साहित करने की बात बताते हुए कहा कि टैगोर के मन में सिख गुरुओं द्वारा दी गई शहादत का बहुत प्रभाव था और उन्होंने गुरु गोविंद सिंह, बंदा सिंह एवं दारो सिंह पर कविताएं लिखी थीं. प्रयाग शुक्ल ने गीतांजलि के हिंदी अनुवाद की चर्चा करते हुए कहा कि टैगोर का लेखन एक तरह से महा समुद्र है और उसमें से मोती चुनना बहुत मुश्किल है. उन्होंने गीतांजलि के कई छंदबद्ध गीतों को प्रस्तुत किया. राधा चक्रवर्ती ने टैगोर द्वारा स्वयं किए गए अंग्रेजी अनुवादों की चर्चा करते हुए बताया कि वह उन अनुवादों से बहुत संतुष्ट नहीं थे. लेकिन वह जानते थे कि एक बड़े समुदाय तक अनुवाद द्वारा अपनी बात पहुंचाई जा सकती है. कार्यक्रम की अध्यक्ष मालाश्री लाल ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया और रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी मोह माया का अनुवाद प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में विभिन्न भारतीय भाषाओं के महत्त्वपूर्ण लेखक, अनुवादक एवं छात्र उपस्थित थे.