नई दिल्लीः गरीबी का जितना सजीव चित्रण प्रेमचंद के साहित्य में मिलता है, उतना कहीं और देखने को नहीं मिलता. चूल्हा तो है मगर चिमटा नहीं है, कुआं है मगर पीने के लिए पानी नहीं है, मृत्यु है मगर कफन नहीं है, कड़कड़ाती जाड़े की रात है मगर कंबल नहीं है…गरीबी और बेबसी का ऐसा मार्मिक वर्णन प्रेमचंद ही कर सकते हैं.” यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार वेदप्रकाश अमिताभ का. वे हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स में ‘प्रेमचंद का साहित्य और उसके सामाजिक सरोकार’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के ‘साहित्य भूषण’ सम्मान से सम्मानित वेदप्रकाश अमिताभ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि कथा सम्राट प्रेमचंद कालजयी और युग प्रवर्तक रचनाकार थे. जिस समय पूरा भारत जातिवाद, छुआछूत और रूढ़िवादी वर्जनाओं से ग्रस्त था, उस समय प्रेमचंद ने साहित्य के माध्यम से क्रांति लाने का कार्य किया. खास बात की उन्होंने केवल समस्याओं को ही नहीं रखा, बल्कि उनके समाधान की ओर भी संकेत किए.
इस अवसर पर लेखिका और साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य पाठक के मन में नैतिक संवेदनाओं को जाग्रत करता है. संबंधों में जुड़ाव पैदा करता है. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने स्त्री विमर्श के मुद्दों को मुखर होकर उठाया है. शर्मा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में संपूर्ण भारतीय समाज का चित्रण है. ‘पंच परमेश्वर’ कहानी का उल्लेख करते हुए साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष ने कहा कि नैतिकता और सामाजिक चेतना पर प्रेमचंद की लेखनी की कोई तुलना नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विप्लव राही ने कहा कि प्रेमचंद हमारे ऐसे पुरखे हैं जिनके विचार और शिक्षाएं हमारे शरीर में लहू बनकर बहते हैं. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ऐसे लेखक हैं जिनकी बातें सिर्फ कथा-कहानियों, किताबों या लेखों में नहीं हैं बल्कि लोगों की जुबान पर चढ़ी हुई हैं और दिलों में बसी हुई हैं.