मनीषा कुलश्रेष्ठ: गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘रेत समाधि’ लंबे एकांत में पढ़ने वाली किताब है। यह एक कहानी नहीं एक विशाल कैनवस है जिसपर बहुत से खुशरंग और त्रासदियां अमूर्त ढंग से अंकित हैं। इनमें अनवरत बेतरतीबी के बीच एक तरतीबी भी है। 'रेत समाधि' अपने कथ्य से अधिक शिल्प के लिए सराहा जा सकता है। गीतांजलि श्री प्रचलित वाक्य ही नहीं उसके विन्यास से भी खूबसूरती से खेलती हैं। 'रेत समाधि' में कथ्य किसी गहरी नदी के तल की तरह कभी दिखता और कभी ओझल होता है। कभी इतनी मारक व्यंजना कि हंस पड़ो और कभी ऐसी विडंबना कि रो पड़ो।  हर पन्ना नये वितान रचता है, समेटता है। कहानी एक लीक पर चलती ही नहीं…. बल्कि अम्मा का किरदार इतनी मनमानी करता है कि वह कहानी पर अपनी सोच के पंख लगा देता है। कभी यह कहानी चराचर जीवों की ज़बानी बयां होती है कभी कोई पुराना दरवाज़ा यह ज़िम्मेदारी उठा लेता है। अम्मा तो हैं ही कि हम अम्मा संग किसी जादुई कालीन पर उड़ते जाते हैं।

यह उपन्यास जटिल है मगर इस उपन्यास की कथा एक सरल वृद्धा चंद्रप्रभा की है जो पति के अवसान के बाद बिस्तर से जा लगी है। चंद्रप्रभा यानि अतीत की चंदा की जीवन यात्रा जटिल और कई सहपात्रों और उपकथाओं से घिरी रही है। चंद्रप्रभा दिल्ली की गलियों में बसे एक सयुंक्त परिवार की दादी है जो बिस्तर पर पड़ कर उठ नहीं पाती। एक दिन वो एक बिंदास ट्रांसजेंडर रोजी के प्रभाव से न केवल उठती है बल्कि अपने अतीत के संसार में लौटती भी है, जो पाकिस्तान और भारत की सरहदों के इर्द-गिर्द बसा है। उपन्यास एकालाप और विचारों के तरल के बीच-बीच में दृश्यात्मक तरीके से लिखा गया है। ऊपरी तौर पर परिवार- रिश्तों पर केंद्रित लगता है यह उपन्यास लेकिन इसके तल में विभाजन, परिवार व्यवस्था, स्त्री, ट्रांसजेंडर मनुष्यों की स्थिति, स्त्री-पुरुष संबंध, यात्रा, विविध परिवेश लुकते-छिपते हैं। इसमें उपस्थित से कहीं अधिक अनुपस्थित प्रभावी है। क़िरदार जो इस कैलाइडोस्कोप की ज़द में आते जाते हैं वो भी कैसे अनूठे – अलबेले…अम्मा की बेटी और उसका अम्मा से लव-हेट का संबंध। बड़ी भाभी…  रोज़ी उनमें सबसे मारक। रज़ा मास्टर का एक अलग जगत, केके की उपस्थिति …फिर सरहद पार बसे माज़ी की रेत में छिपा अनवर। चंदा का अनवर….

रेत-समाधि उपन्यास में व्यंजना तत्व इतना गहरा और अमूर्त है और संदर्भ जटिल कि इसकी अनुवादक डेज़ी रॉक्वेल को कई जगह गीतांजलि श्री से डिसकस करना पड़ा होगा। अनुवाद इतना अच्छा हुआ होगा कि बुकर के निर्णायकों ने इसको पुरस्कृत करने योग्य पाया।