फारबिसगंजः बिहार की माटी के लाल और हिंदी साहित्य जगत के आकाश पर ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले अमर कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु अपनी 101वीं जयंती पर पूरे राज्य में याद किए गए. बिहार शरीफ, औराही से लेकर सिमराहा तक समारोह पूर्वक लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की. कई जगहों पर प्रशासन, परिजन, जनप्रतिनिधि और साहित्यप्रेमी मौजूद थे. सबसे पहले औराही स्थित रेनु समाधि स्थल पर रेणु जी को श्रद्धांजलि दी गई. उसके बाद उत्क्रमित मध्य विद्यालय स्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण व श्रद्धांजलि की गई . अंत में सिमराहा चौक स्थित रेणु की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया. इस मौके पर स्थानीय सांसद प्रदीप कुमार सिंह, एसपी अशोक कुमार सिंह , एसडीओ सुरेंद्र कुमार अलबेला, एसडीपीओ रामपुकार सिंह, अवर निर्वाचन पदाधिकारी अविनाश कृष्ण, बीडीओ राज किशोर प्रसाद, सीओ संजीव कुमार, थानाध्यक्ष साजिद आलम, पूर्व विधायक व रेणु के ज्येष्ठ पुत्र पदम पराग राय वेणु, दक्षिणेश्वर प्रसाद पप्पू, देवेंद्र प्रसाद गुप्ता, दिलीप पटेल, नीलोत्पल, निशांत, सच्चिदानंद मेहता, विश्वनाथ विश्वास, प्रमोद ज्ञानी, मनोज गुप्ता सहित बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया. मध्य विद्यालय में तीसरी कसम के गीत 'सजन रे झूठ मत बोलो' की धुन के साथ श्रद्धांजलि कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र बना तो सिमराहा स्थित आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. माल्यार्पण स्थल पर सीढ़ी नहीं होने से आदमकद प्रतिमा तक पहुंचने में समस्याएं आईं.
बिहारशरीफ के छोटी पहाड़ी मोहल्ला स्थित रामसागर निवास में साहित्यकारों व कवियों ने हिंदी साहित्य में नवजागरण के अग्रदूत फणीश्वरनाथ रेणु की जयंती मनाई. साहित्यिक मंडली शंखनाद नालंदा की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता इतिहासकार व साहित्यकार डॉ लक्ष्मीकांत सिंह तथा संचालन नामचीन राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया. समारोह में उपस्थित लोगों ने रेणु के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की. अध्यक्षता करते हुए डॉ लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि रेणु आधुनिक भारतीय लोकभाषा के क्रांतिकारी कथाकार ही नहीं बल्कि सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के अग्रदूत थे. उनका पहला उपन्यास 'मैला आंचल' इसका साक्षात उदाहरण है. राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बाद रेणु ने भारतीय समाज को अपनी रचनाओं के माध्यम से आईना दिखाया. बेनाम गिलानी ने कहा कि ठेठ ग्रामीण पहचान को बुनियाद बनाकर अपनी रचनाओं के जरिए ग्रामीण संस्कृति को सहजता से पेश करने वाले अजीम साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु महज एक लेखक ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल समाजशास्त्री, लोकमर्मज्ञ और गायब होती इलाकाई सकाफत के संवाहक भी थे. डॉ आनंद वर्द्धन ने कहा कि बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण परिवेश की पृष्ठभूमि का रेणु ने अत्यंत ही जीवंत और मुखर रूप से चित्रण किया है. शिक्षाशास्त्री मो जाहिद हुसैन, संगीतकार-शिक्षक रामसागर राम, सुभाष चंद्र पासवान, धीरज कुमार, राज हंस चंद्रवंशी, पुनीत हरे, विकास कुमार, अर्चना कुमारी, जितेंद्र कुमार, समर वारिस, मनीष कुमार, चिंटू कुमार, नलिन मौर्य, कमलेश कुमार, शुभम कुमार शर्मा, रविरंजन कुमार, मुन्ना कुमार सहित दर्जनों लोगों ने रेणु के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा की.