नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के रजत जयंती समारोह को आभासी रूप से ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा गांधी जी की 'नई तालीम', उनके अनुभवों पर किया गया शोध और अध्ययन, शिक्षा नीति के निर्माताओं के लिए उपयोगी हो सकते हैं. नायडू ने कहा कि हमारी संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया तथा साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं को भी आठवीं अनुसूची में संवैधानिक दर्जा दिया. उन्होंने कहा कि हर भारतीय भाषा का गौरवशाली इतिहास है, समृद्ध साहित्य है. हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे देश में भाषाई विविधता है. यह विविधता हमारी शक्ति है क्योंकि हमारी भाषाएं हमारी सांस्कृतिक एकता को अभिव्यक्त करती हैं.  उपराष्ट्रपति ने युवा छात्रों से संप्रदाय, जन्म, क्षेत्र, लैंगिक विभेद, भाषा आदि भेदभावों से ऊपर उठकर देश की एकता को मजबूत करने का आग्रह किया. भाषा के विषय में महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी के लिए भाषा का प्रश्न, देश की एकता का सवाल था. उनका मानना था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है. इस क्रम में उन्होंने हिंदी को आम जनता के लिए सरल और सुगम बनाने का आग्रह किया जिससे हिंदी का बहुतायत प्रचलन बढ़ सके.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हिंदी के प्रति आग्रह के बावजूद भी महात्मा गांधी हर नागरिक के लिए उसकी मातृभाषा की संवेदनशीलता समझते थे.उन्होंने मातृभाषा को स्वराज से जोड़ा. महात्मा गांधी मानना था कि स्वराज का अर्थ ये नहीं है कि किसी पर कोई भाषा थोपी जाए. सबसे पहले मातृभाषा को ही महत्त्व दिया जाना चाहिए. असली अभिव्यक्ति तो मातृभाषा में ही हो सकती है.  उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक सभ्य समाज से यही अपेक्षित है कि उसकी भाषा सौम्य, सुसंस्कृत और सृजनशील हो. उन्होंने विश्वविद्यालयों से अपेक्षा की कि वे यह संस्कार डालें कि साहित्य लेखन से समाज में सभ्य संवाद समृद्ध हो, ना कि विवाद पैदा हो. हम अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी को भाषा की मर्यादा और समाज के अनुशासन में रह कर प्रयोग करें. उपराष्ट्रपति ने कहा कि विदेशों में फैले प्रवासी भारतीय समुदाय तथा विश्व के अन्य हिंदी भाषी देशों को, मातृभूमि भारत से जोड़े रखने में हमारी भारतीय भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.