विदिशाः कवि एवं आलोचक शैलेंद्र चौहान के कृतित्व पर केंद्रित संचयन 'वसंत के हरकारे' का विमोचन मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विदिशा जिला इकाई के तत्वावधान में सम्राट अशोक अभियांत्रिकी महाविद्यालय के स्मार्ट क्लास हॉल में संपन्न हुआ. यह पुस्तक शैलेंद्र चौहान की विभिन्न विधाओं में की गई रचनाशीलता पर आलोचनात्मक दृष्टि से लिखे गए विभिन्न लेखों का संचयन, संपादन है. इसका संपादन इकाई के सचिव सुरेंद्र सिंह कुशवाह ने किया है. पुस्तक का लोकार्पण सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो शीलचंद पालीवाल, पाठक न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष गोविंद देवलिया एवं वरिष्ठ कवि कालूराम पथिक के सानिध्य में हुआ. कार्यक्रम का आरंभ कथाकार सूर्यकांत नागर के आलेख 'गहरी जीवन दृष्टि के अन्वेषक कवि शैलेंद्र चौहान' के वाचन से हुआ. जिसमें चौहान को ग्राम्य जीवन का कुशल चितेरा बताते हुए कहा गया कि लोक उनके अंदर गहरे तक समाया है. गांव की बदलती तस्वीर उन्हें बेचैन किए रहती है. बाजारवाद और शहरीकरण ने गांवों को प्रभावित किया है. ग्रामीण संस्कृति विकृत हो रही है. गांव और शहर- दो अलग दुनिया बना दी गई है, जहां गांव गौण है. गांव के ऊपर ध्यान देना हमारी सोच का हिस्सा ही नहीं है. उपन्यास 'पांव जमीन पर' में इस विसंगति को बहुत शिद्दत से उभारा गया है.
युवा कवि एवं आलोचक प्रो अस्मुरारी नंदन मिश्र ने कहा कि किसी ऐसे रचनाकार- जिस पर मुख्यधारा की आलोचना चुप है, पर किताब लाना साहस, संवेदनापूर्ण और आवश्यक काम है. शैलेंद्र चौहान की रचनाशीलता पर सुरेंद्र सिंह कुशवाह ने अपने अग्रलेख में शैलेंद्र की सभी प्रकाशित पुस्तकों पर कुछ सुविज्ञ रचनाकारों द्वारा की गई समालोचना और टिप्पणियां भी शामिल की हैं. इस पुस्तक की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आलोच्य रचनाकारों को संपूर्णता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. इससे जहां शैलेंद्र के विषय में जानने समझने का मौका मिलता है, वहीं उनकी रचनाओं के प्रति सहज उत्सुकता भी पैदा होती है. प्रो पालीवाल ने चौहान के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय रखी. चौहान की यथार्थवादी रचनाशीलता का उन्होंने जिक्र किया और उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा के महत्त्व को प्रतिपादित किया. उन्होंने कहा कि शैलेंद्र चौहान कथ्य को कला से ऊपर मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे कला को खारिज करते हैं. गोविंद देवलिया ने शैलेंद्र चौहान के कृतित्व में लोक एवं स्थानीयता को यथार्थवादी दृष्टि से प्रस्तुत करने वाली प्रतिभा का ज़िक्र किया. पलाश सुरजन ने शैलेंद्र चौहान की स्पष्ट विचार दृष्टि और अविचलित प्रतिबद्धता को महत्त्वपूर्ण माना. एक ऐसे समय में जब रचनाकार अपने मुखौटे उतार दे रहे हैं और सत्ता के साथ खेल में शामिल हैं, तब शैलेंद्र चौहान अपने ही रास्ते पर चल रहे हैं. कार्यक्रम के दूसरे सत्र में स्थानीय रचनाकारों उदय ढोली, दिनेश श्रीवास्तव, सुरेंद्र श्रीवास्तव, शाहिद अली, निसार मालवी, कृष्णकांत मूंदड़ा, कालूराम पथिक, सुरेंद्र सिंह कुशवाह तथा ममता गुर्जर ने अपनी कविताओं और गजलों का पाठ किया. श्रोताओं में इंजी ओपी श्रीवास्तव, डॉ सुरेश गर्ग, डॉ कुसुम गर्ग, प्रो.राजित राम द्विवेदी, उपेंद्र कालसकर, सुलखान सिंह हाड़ा एवं संतोष नेमा आदि प्रमुख थे.