छत्रपति शिवाजी के गुणों के शोधपरक कीर्तिगान 'जाणता राजा' यानी विवेकवान राजा के अमर रचयिता बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे यानी लोकनाम शिव शाहिर बाबासाहेब पुरंदरे को याद करने वालों की कमी नहीं है. भारत के जाने-माने इतिहासकार, लेखक 99 वर्षीय बाबासाहेब पुरंदरे के निधन पर प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम राजनेताओं ने गहरा दुख जताया है. बाबासाहेब पुरंदरे का पूरा नाम बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे था. वह देश के जाने-माने इतिहासकार-लेखक और थिएटर कलाकार भी थे. उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन, शासन प्रणाली और व्यवस्था के बारे में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कई नेताओं ने दुख प्रकट किया है. पीएम मोदी ने कहा, ''दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकता. बाबासाहेब का जाना इतिहास और संस्कृति की दुनिया में बड़ा शून्य छोड़ गया है. उनका धन्यवाद है कि आने वाली पीढ़ियां छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी रहेंगी.” पीएम ने आगे कहा, “बाबासाहेब का काम प्रेरणा देने वाला था. मैं जब पुणे दौरे पर गया था तो उनका नाटक जनता राजा देखा, जो कि छत्रपति शिवाजी महाराज पर आधारित था. बाबासाहेब जब अहमदाबाद आते थे, तो भी मैं उनके कार्यक्रमों में हिस्सा लेने जाता था.” बाबासाहेब पुरंदरे ने अपने जीवनकाल में लगभग 12000 से अधिक बार छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर अभिभाषण दिया था. उनकी अन्य पुस्तकों के नाम महाराज, लाल महल, पुरंधर, राजगढ़, प्रतापगढ़, फुलवंती और सावित्री आदि हैं.
बाबासाहेब पुरंदरे का जन्म महाराष्ट्र में 29 जुलाई, 1922 को पुणे तत्कालीन पूना में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से संबंधित कहानियों को लिखना शुरू कर दिया था. इसके अलावा उन्होंने पुणे के पेशवाओं के इतिहास का भी गहन अध्ययन किया था. इन कहानियों के संग्रह को आगे चलकर 'थिनाग्य' नाम दिया गया. इन्हीं कारणों से उन्हें महाराष्ट्र में 'शिव शाहिर' के नाम से भी जाना जाता है. उनके द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख पुस्तकें राजा शिव छत्रपति और केसरी भी हैं. साल 2015 में बाबासाहेब पुरंदरे को उनके अहम योगदान के कारण महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. बाबा पुरंदरे ने शिवाजी के जीवन से लेकर उनके प्रशासन और उनके काल के किलों पर भी कई किताबें लिखी थी. इसके अलावा उन्होंने छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व शैली पर एक लोकप्रिय नाटक- जाणता राजा का भी निर्देशन किया था. लेखन और कला जगत में उनके अहम योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 2019 में देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. बाबासाहेब पुरंदरे को छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानियों को घर-घर तक पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है. बाबासाहेब पुरंदरे द्वारा रचित नाटकों में सबसे प्रसिद्ध साल 1985 में आई जाणता राजा है. इस नाटक में छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में बताया गया है. इस नाटक का देश-विदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में हजारों बार मंचन किया गया है और इसमें देश-विदेश के कलाकार भी हिस्सा लेते हैं. इस क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा साल 2007-2008 के कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया
बाबासाहेब पुरंदरे का जन्म महाराष्ट्र में 29 जुलाई, 1922 को पुणे तत्कालीन पूना में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से संबंधित कहानियों को लिखना शुरू कर दिया था. इसके अलावा उन्होंने पुणे के पेशवाओं के इतिहास का भी गहन अध्ययन किया था. इन कहानियों के संग्रह को आगे चलकर 'थिनाग्य' नाम दिया गया. इन्हीं कारणों से उन्हें महाराष्ट्र में 'शिव शाहिर' के नाम से भी जाना जाता है. उनके द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख पुस्तकें राजा शिव छत्रपति और केसरी भी हैं. साल 2015 में बाबासाहेब पुरंदरे को उनके अहम योगदान के कारण महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. बाबा पुरंदरे ने शिवाजी के जीवन से लेकर उनके प्रशासन और उनके काल के किलों पर भी कई किताबें लिखी थी. इसके अलावा उन्होंने छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व शैली पर एक लोकप्रिय नाटक- जाणता राजा का भी निर्देशन किया था. लेखन और कला जगत में उनके अहम योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 2019 में देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. बाबासाहेब पुरंदरे को छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानियों को घर-घर तक पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है. बाबासाहेब पुरंदरे द्वारा रचित नाटकों में सबसे प्रसिद्ध साल 1985 में आई जाणता राजा है. इस नाटक में छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में बताया गया है. इस नाटक का देश-विदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में हजारों बार मंचन किया गया है और इसमें देश-विदेश के कलाकार भी हिस्सा लेते हैं. इस क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा साल 2007-2008 के कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया