हिंदी के कालजयी कथाकार नरेन्द्र कोहली का दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में निधन हो गया। वो एक सप्ताह पहले कोरोना से संक्रमित हो गए थे और पिछले शनिवार को उनको अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। उसी दिन रात में उनकी तबीयत बिगड़ने और ऑक्सीजन लेबल कम होने के बाद चिकित्सकों की सलाह पर उनको वेंटिंलेटर पर रखा गया। लगभग सप्ताह भर तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद नरेन्द्र कोहली ने शनिवार की शाम को अंतिम सांस ली। कोहली जी के निधन से भारतीय साहित्य का एक ऐसा सितारा अस्त हो गया जिसकी चमक से साहित्याकाश जगमगाता था। नरेन्द्र कोहली हिंदी के अप्रतिम कथाकार थे और उन्होंने विपुल लेखन किया था। भारत सरकार ने लेखन के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उनको पद्मश्री से सम्मानित किया था। इसके अलावा कोहली जी को व्यास सम्मान, श्लाका सम्मान और पंडित दीनदयाल सम्मान से सम्मानित किया गया था।
नरेन्द्र कोहली ने अपनी लेखनी के माध्यम से विपरीत परिस्थितियों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख जगाए रखी। उनके लेखन के केंद्र में भारत और भारतीयता रही। पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों को अपने लेखन के केंद्र में रखनेवाले नरेन्द्र कोहली ने महाभारत और रामायण को नए सिरे से व्याख्यायित किया। इसके अलावा उन्होंने स्वामी विवेकानंद की जीवनी भी लिखी। नरेन्द्र कोहली ने उपन्यास के अलावा, व्यंग्य, कहानी और नाटक भी लिखे। उनकी कृतियो में अभ्युदय (दो खंड), महासमर के नौ खंड, न भूतो न भविष्यति, मेरे राम, मेरी रामकथा, कुंती, दीक्षा, संघर्ष की ओर, युद्ध (दो भाग) आदि प्रमुख हैं।
नरेन्द्र कोहली के निधन पर सांस्कृतिक जगत में शोक व्याप्त है। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बल्देव शर्मा ने अपने शोक संदेश में कहा कि, कोहली जी हम सबके संरक्षक थे, उन्होंने भारतीय साहित्य को आत्मबोध से मूल्य संवर्धित किया। नरेन्द्र कोहली हमारे समय के कीर्ति कलश थे। उनके जाने का एहसास भी पीड़ादायक है। पद्मश्री मालिनी अवस्थी के मुताबिक राम का अनन्य भक्त संसार छोड़कर चला गयाष स्तब्ध हूं क्या कहूं उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।