हिंदी साहित्य में दूसरा नामवर होना असंभव है. डॉ. नामवर सिंह हिंदी आलोचना की वाचिक परम्परा के आचार्य माने जाते हैं. उनकी खासियत यह है कि लंबे समय से वह लिख नहीं रहे, सिर्फ बोल रहे, पर उनका कथन और उनकी आलोचना किसी को भी लेखक के रूप में स्थापित करने में सक्षम है. नामवर घूम-घूमकर वैचारिक लड़ाई लड़ते हैं और साहित्य से लेकर समाज और सियासत में फैली रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, कलावाद, व्यक्तिवाद आदि पर अपने विचार निर्भिकता से रखते हैं. उनके कृतित्व और व्यक्तित्व, उनके चिंतन, भाषा, उनकी रचनाशीलता और उनके व्यक्तित्व से नयी पीढ़ी को एक नई दिशा मिली है. वह हिंदी के शीर्ष शोधकार-समालोचक, निबंधकार तथा मूर्द्धन्य सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उपन्यास लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के सबसे प्रिय शिष्‍यों में एक हैं. अत्यधिक अध्ययनशील तथा विचारक प्रकृति के नामवर सिंह का जन्म चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में 28 जुलाई, 1926 को हुआ था. लंबे समय तक वह स्कूल पंजिका में दर्ज 1 मई, 1927 को अपना जन्म-दिवस मनाते रहे, लेकिन उनका असली जन्म दिवस यही जुलाई वाला है.

उन्होंने हिंदी साहित्य से एमए व पीएचडी करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन किया, पर जल्द ही राजनीति में घुस गए. साल 1959 में चकिया-चंदौली लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रूप में चुनाव लड़ा और हार के चलते बीएचयू छोड़ना पड़ा. उसके बाद वह सागर विश्वविद्यालय, जोधपुर विश्वविद्यालय और बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन से जुड़ गए. जेएनयू से उनका लगाव कुछ ऐसा रहा कि अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे उसी विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे. वह महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और राजा राममोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. नामवर सिंह हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, बाङ्ला एवं संस्कृत भाषा भी जानते हैं. उनकी प्रकाशित कृतियों की संख्या काफी बड़ी है, जिनमें बक़लम ख़ुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृथ्वीराज रासो की भाषा, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां, छायावाद, इतिहास और आलोचना, कहानी: नयी कहानी, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद और संवाद, कहना न होगा, बात बात में बात, काशी के नाम, आलोचक के मुख से खास हैं. इसके अलावा उनके विचारों और व्याख्यानों पर संपादित पुस्तकों की भी भरमार है.
आशीष त्रिपाठी के संपादन में आई- कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता, हिंदी का गद्यपर्व, प्रेमचमद और भारतीय समाज, ज़माने से दो दो हाथ, साहित्य की पहचान, आलोचना और विचारधारा, सम्मुख, साथ साथ के अलावा उनके क्लास नोट्स भी शैलेश कुमार, मधुप कुमार एवं नीलम सिंह के संपादन में 'नामवर के नोट्स' नाम से प्रकाशित हुए. नामवर सिंह ने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी से लेकर गोरख पांडेय तक के साथ पुस्तकें संपादित की और डाॅ एलप तेस्सितोरी की किताब का अनुवाद किया. उनके द्वारा संयुक्त रूप से संपादित और अनूदित पुस्तकों के नाम हैं, संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, पुरानी राजस्थानी, चिंतामणि भाग-3, कार्ल मार्क्स: कला और साहित्य चिंतन, नागार्जुन: प्रतिनिधि कविताएं, मलयज की डायरी (तीन खंडों में), आधुनिक हिंदी उपन्यास भाग-2, रामचन्द्र शुक्ल रचनावली. अध्यापन, व्याख्यान, आलोचना एवं लेखन के अलावा नामवर सिंह ने 1965 से 1967 तक साप्ताहिक जनयुग और 1967 से 1990 तक त्रैमासिक आलोचना का संपादन भी किया.
हिंदी साहित्य और आलोचना के क्षेत्र में नामवर सिंह द्वारा किए गए कामों के महत्त्व को उनपर केंद्रित तमाम साहित्य को देखकर भी समझा जा सकता है, जिनमें समय-समय पर 'पहल', 'पूर्वग्रह', ' दस्तावेज',  'वसुधा', 'पाखी' और 'बहुवचन' के विशेषांकों
के अलावा आलोचक नामवर सिंह, नामवर के विमर्श, नामवर सिंह: आलोचना की दूसरी परम्परा, आलोचना के रचना पुरुष: नामवर सिंह, नामवर की धरती, जेएनयू में नामवर सिंह और हिंदी के नामवर पुस्तक शामिल है. उन्हें कई महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से शलाका सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से साहित्य भूषण सम्मान, 'पाखी' तथा इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी की ओर से शब्द साधक शिखर सम्मान और महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान शामिल है.

हिंदी साहित्य के इस प्रखर आलोचक को जागरण हिंदी की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई!