नई दिल्ली: विज्ञान के चार क्रांतिकारी प्रकाशनों में से एक प्रोफेसर सत्येन्द्र नाथ बोस के अंतिम प्रकाशन के 100 वर्ष पूरे होने पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय सूद ने कोलकाता में एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज द्वारा फोटोनिक्स, क्वांटम सूचना और क्वांटम संचार पर आयोजित 5 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया. उन्होंने कहा कि हम क्वांटम यांत्रिकी में दूसरी क्रांति से गुजर रहे हैं और मौलिक विज्ञान और तकनीकी हस्तक्षेप के बीच का अंतर कम हो रहा है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने कहा कि 100 वर्षों के बाद हम देख रहे हैं कि मौलिक विज्ञान की अवधारणाओं को संचार, कंप्यूटिंग और अन्य अनुप्रयोगों के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है. एसएन बोस नेशनल सेंटर की निदेशक प्रोफेसर तनुश्री साहा-दासगुप्ता ने कहा कि सत्येन्द्रनाथ बोस का मौलिक शोध पत्र 1924 में आइंस्टीन द्वारा जर्मन में अनुवादित होने के बाद प्रकाशित हुआ था. उन्होंने कहा कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों और भारत के विभिन्न राज्यों से वैज्ञानिक, छात्र और मीडियाकर्मी अपने विचारों का आदान-प्रदान करने, अपने शोध निष्कर्षों को साझा करने और एक-दूसरे से प्रेरणा लेने के लिए इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. क्वांटम सांख्यिकी पर सत्येन्द्र नाथ बोस के अग्रणी कार्य ने बोस-आइंस्टीन संघनन, क्वांटम सुपरकंडक्टिविटी और क्वांटम सूचना सिद्धांत सहित आधुनिक क्वांटम प्रौद्योगिकियों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है.

सन 1900 में प्लैंक, 1905 में आइंस्टीन और 1913 में नील्स बोहर के बाद 1924 में बोस ने अंतिम शोध प्रकाशन लिखा, जिससे नई क्वांटम यांत्रिकी का मार्ग प्रशस्त हुआ. ब्रह्मांड में आधे मूलभूत कणों का नाम उन्हीं के नाम पर- बोसोन रखा गया है. उन्होंने प्लैंक के नियम को क्रांतिकारी तरीके से निकाला जिससे आइंस्टीन प्रभावित हुए और बाद में उन्होंने परस्पर सहयोग करना जारी रखा. उनकी साझेदारी के परिणामस्वरूप नए भौतिक सिद्धांत सामने आए, जिनमें बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट शामिल हैं. बोसोन से संबंधित कार्य के लिए बाद में कई नोबेल पुरस्कार प्रदान किए गए और बल साथ लेकर ले जाने वाले कणों का नाम स्वयं बोस के नाम पर रखा गया. नए क्वांटम आंकड़ों को विकसित करने के साथ-साथ बोस का काम नवीन प्रौद्योगिकियों की नींव भी रखता है, जिसका अनुप्रयोग दूसरी क्वांटम क्रांति में भी होता है. प्रो एसएनबोस के जीवन और कार्यों को सम्‍मानित करने के लिए 1986 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान ‘एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज’ पूरे वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करके सैद्धांतिक भौतिकी में बोस के महान कार्य की शताब्दी मना रहा है. जहां सम्मेलन नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित विश्व भर के विशेषज्ञों को एक मंच पर एक साथ आने और अपने विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करेंगे, वहीं इसके आउटरीच कार्यक्रम विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की दिशा में गति भी उत्पन्न करेंगे.