नई दिल्लीः राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का असर अब साफ दिखने लगा है. 36वें भारतीय इंजीनियरिंग कांग्रेस में यह बात दिखाई दी. कई वक्ताओं ने इस ओर प्रयास करने की बात कही और समापन सत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र हर हाल में भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए प्रतिबद्ध है, और इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र को अपना माध्यम बना रहा है. प्रधान ने कि स्थानीय भाषाओं और मातृभाषा में इंजीनियरिंग की शिक्षा सशक्तीकरण का एक साधन बनेगी. केंद्रीय मंत्री प्रधान ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत वैज्ञानिक सोच और सुदृढ़ इंजीनियरिंग क्षमता वाले लोगों का देश रहा है. हमारे सभ्यतागत इतिहास में संरचनात्मक इंजीनियरिंग, जल प्रबंधन और समुद्री इंजीनियरिंग आदि के वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं. उन्होंने भारत की इंजीनियरिंग परंपराओं को आगे बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भूमिका के लिए आईईआई की सराहना की.
प्रधान ने कहा कि 21 वीं सदी के लिए अपने युवाओं को तैयार करने के लिए दूरदर्शी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन सहित हम कौशल के साथ शिक्षा को एकीकृत कर रहे हैं, एक बहु-विषयक दृष्टिकोण अपना रहे हैं और कौशल व प्रशिक्षुता को मुख्य पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप स्थानीय भाषाओं और मातृभाषा में इंजीनियरिंग शिक्षा की शुरुआत हमारे युवाओं के सशक्तीकरण का एक साधन होगी व हमारे इंजीनियरिंग कौशल को और अधिक मजबूत करेगी. प्रधान ने इस पर जोर दिया कि इंजीनियरिंग की शिक्षा केवल डिग्री प्रदान करने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए. हमें अपने इंजीनियरिंग समुदाय की शिक्षण प्रक्रिया और क्षमता निर्माण में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने की दिशा में सामूहिक रूप से काम करना चाहिए. उन्होंने आगे अनुरोध किया कि आईईआई को नवाचार, इसके सदस्यों के द्वारा ज्ञान साझा करने और रोजगार व उद्यमिता के नए प्रतिमान बनाकर भारत की इंजीनियरिंग क्षमता को और अधिक मजबूत करने का प्रयास जरूर करना चाहिए.