सनातन आराध्यों को लेकर हमेशा से बड़ी बहस होती रही है। कम्युनिस्ट इतिहासकार उन्हें काल्पनिक चरित्र कहते रहे हैं जबकि साधारण जन अवतार। लोक में प्रचलित कितनी ही मान्यताओं, परम्पराओं और स्थलों के आधार पर आम लोगों ने माना कि राम और कृष्ण जन्मे तो साधारण मानवों की तरह परंतु उनके कृतित्व ने उन्हें महामानव बना दिया। उनका किया उन्हें एक ऐसे आसन पर प्रतिष्ठित कर गया जहां एक मर्यादा का शिखर हुआ और दूसरा लीला का। एक भारतीय गौरवबोध का प्रतीक पुरुष हुआ जबकि दूसरे ने दुनिया को अपना दीवाना बना लिया। यथार्थ और कल्पना के बीच सत्य के संधान का यह शास्त्रार्थ अब भी जारी है लेकिन, इसी बीच राम को इतिहास मानने का सशक्त स्वर पिछले वर्ष संवादी से ही उठा। संवादी के ही मंच पर राम और कृष्ण को भारत का पूर्वज और ऐतिहासिक चरित्र घोषित किया गया। जो लोग राम को धर्म की सीमा में बांधते हैं, उनके लिए यह बड़ा संदेश था और यह दिया अंग्रेजी लेखक अमीश और लोककथा मर्मज्ञ उषा किरण खान ने। अमीश ने स्पष्ट कहा कि राम हिंदुओं के नहीं, भारत के पूर्वज हैं। उषा किरण ने इन चरित्रों को मिथक बताने वालों को सलाह दी कि यदि वे मिथिला जाएं तो सीता को वहां चारों ओर अनुभव करेंगे। हां, यदि सीता का तलाशना चाहेंगे तो वह नहीं मिलेगा। राम को इतिहास की एक घटना बताते हुए उषा किरण ने तर्क नहीं त्याग दिया। राम की महिमा सुनाते हुए उन्होंने उस रामराज्य पर प्रश्न उठाया जिसमें सीता को त्यागा गया था। सीता का एक नया रूप भी उन्होंने दर्शकों के समक्ष रखा कि लोग उन्हें त्याग, तपस्या की मूर्ति और सीधी सज्जन स्त्री मानते हैं जबकि यह सब होते हुए भी वह अत्यंत दृढ़ और वीर थीं।
दैनिक जागरण द्वारा पिछले चार वर्षों से लखनऊ में आयोजित साहित्योत्सव संवादी ऐसे ही बड़े और जटिल प्रश्नों को उठाता आया है। संवादी यदि अभिव्यक्ति का उत्सव है तो फिर यहां वाणी अपनी पूरी प्रखरता के साथ मुखर भी होती रही है। यह बात समझने की है कि प्रखरता के लिए विवादों का दामन कभी नहीं थामा गया। बस, सभी ने अपनी बात दम से कही। इसीलिए जब संगीत के मंच पर पद्मभूषण पं छन्नूलाल मिश्र और प्रसिद्ध गायिका सुनंदा शर्मा ने नई पीढ़ी को एक सीख दी कि, 'तुम्हारे पास सब कुछ है पर नहीं है तो संगीत को साधना और आराधना मांगने का अहसासÓ तो खचाखच भरे हॉल ने उन्हें ध्यानपूर्वक सुना। पत्रकार राहुल देव ने जब सरलता के नाम पर हिंदी मेंं अंग्रेजी डालने वाले लेखकों से कहा कि 'फादर और मदर वाली हिंदी तो हमें कहीं का नहीं रखेगीÓ तो सभागार उनके साथ हुआ। प्रख्यात लोक व उपशास्त्रीय गायिका मालिनी अवस्थी ने जब चिंता जतायी कि अवध में अब न पनिहारिनें और मिरासिनें बचीं और न शादियों में गाली गाने की परंपरा तो लखनऊ ने खड़े होकर उनका समर्थन किया।
संवादी केवल साहित्य या रंगकर्म की बात नहीं करता, इसके मंच पर दिलीप वेंगसरकर भी बैठे और जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक भी। पाठक ने जब इसी मंच से ललकारा कि उनके बाद पाकेट बुक्स का धंधा खत्म हो जाएगा तो लोकप्रियता की उपेक्षा करने वाले समीक्षकों के पास उनका कोई उत्तर नहीं था। प्रो. पुष्पेश पंत ने जब ऋतु और रसोई के साथ रति का रोचक मेल बिठाया तो आनंदित श्रोता उनका सत्र देर रात तक खींच ले गए। दुनिया भर के पकवानों का महिमा वर्णन करते करते जब उन्होंने सिलबट्टे पर पिसी चटनी और लकड़ी के चूल्हे पर सिंकी रोटियों का तराना छेड़ा तो भला कौन था जिसके मुंह में पानी न आ गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धर्म के गूढ़ प्रश्नों की जब सरल व्याख्या की तो उपस्थित समूह की कई जिज्ञासाओं का समाधान हुआ। इतने बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री को राजनीति और प्रशासन से परे हटकर विशुद्ध धार्मिक चर्चा करते देखना श्रोताओं के लिए नया अनुभव था।
संवादी में ही दैनिक जागरण ने अपने हिंदी हैं हम अभियान के अंतर्गत हिंदी की बेस्ट सेलर किताबों की श्रृंखला आरंभ की थी। हर तिमाही प्रकाशित होने वाली इस सूची की आज लेखकों और पाठकों को एक समान भाव से प्रतीक्षा रहती है। संवादी अब उत्तर प्रदेश के साहित्यिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की अनिवार्यता बन चुका है। दैनिक जागरण अपने सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध समाचारपत्र समूह है। उसके द्वारा तैयार किया गया संवाद का यह विराट मंच हिंदी साहित्य और कला जगत को नई आभा दे रहा है। संवादी का जोर कंटेंट पर रहता है। लगातार सत्र और उनके उतने ही अच्छे संचालक संवादी को आनंद, मनोरंजन और ज्ञान की ऐसी यात्रा पर ले जाते हैं जहां श्रोता बह निकलता है, बिल्कुल रम जाता है। इस बार संवादी 30 नवंबर से दो दिसंबर तक लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी लॉन में होना है। इस बार भी अनेक साहित्यकार, कलाकार, रंगकर्मी, शेफ और कवि व शायर अपनी–अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।
तो आइये…बुला रहा है लखनऊ।
(-आशुतोष शुक्ल)