कानपुर: प्रख्यात आलोचक देवीशंकर अवस्थी की स्मृति में प्रतिवर्ष आलोचना के लिए दिया जाने वाला प्रतिष्ठित 'देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान' इस साल युवा आलोचक मृत्युंजय पांडेय को दिया जाएगा. यह पुरस्कार उन्हें पिछले साल प्रकाशित उनकी आलोचना पुस्तक 'रेणु का भारत' के लिए दिया जाएगा. मृत्युंजय का जन्म बिहार के गोपालगंज के दिधवा दुबौली नामक कस्बे में साल 1982 में हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और फिलहाल उसी से विश्वविद्यालय सम्बद्ध सुरेन्द्रनाथ कालेज में हिंदी के प्राध्यापक हैं. देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान की निर्णायक समिति की संयोजक कमलेश अवस्थी के अनुसार 5 अप्रैल को नई दिल्ली के साहित्य अकादमी के रवीन्द्र भवन सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में मृत्युंजय पांडेय को यह सम्मान दिया जाएगा. अभी तक यह पुरस्कार मदन सोनी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विजय कुमार, सुरेश शर्मा, शंभुनाथ, वीरेन्द्र यादव, अजय तिवारी, पंकज चतुर्वेदी, अरविन्द त्रिपाठी, कृष्ण मोहन, अनिल त्रिपाठी, ज्योतिष जोशी, प्रणयकृष्ण, प्रमिला के. पी., संजीव कुमार, जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रियम अंकित, विनोद तिवारी, जीतेन्द्र गुप्त, वैभव सिंह, पंकज पराशर, और अमिताभ राय जैसे आलोचकों को मिल चुका है.

याद रहे कि देवीशंकर अवस्थी अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक समर्थ युवा आलोचकों में से एक थे. उनका जन्म 5 अप्रैल, 1930 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के सथनी-बालाखेड़ा में हुआ था. 1953 में कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से हिंदी में एम.ए. किया और वहीं हिंदी विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हो गए. वहीं से उन्होंने लिखना शुरू किया और प्रगतिशील लेखक संघ और परिमल जैसे बौद्धिक संगठनों से जुड़ गए. आलोचना के अतिरिक्त वे ए. डी. शंकरन के छद्म नाम से कविताएं भी लिखते थे और जीवन के अंतिम दिनों में एक नाटक भी लिख रहे थे. आलोचना और आलोचना-1960 उनके आलोचनात्मक निबंधों का पहला संग्रह था. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में उन्होंने अठारहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा काव्य में प्रेमाभक्ति विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी. 13 जनवरी, 1966 को एक सड़क दुर्घटना में असमय उनकी मृत्यु हो गई. उनकी स्मृति में उनकी पत्नी कमलेश अवस्थी के परिवार द्वारा वर्ष 1995 में देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान की शुरुआत की गई थी. इस पुरस्कार के बहाने हिंदी आलोचना में युवाओं की सहभागिता को प्रोत्साहन मिल रहा है. यह पुरस्कार हर साल पैंतालिस वर्ष तक के युवा आलोचक को दिया जाता है.