वाराणसी: भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष हैं. इसे लेकर किसी तरह का कोई संशय नहीं है. इसी तरह काशी से उनकी स्मृतियां भी अमिट हैं. हिंदी खड़ी बोली के जनक के रूप में उनकी स्मृतियां हम सब को सदैव गौरवान्वित करती रहेंगी. ये बातें समीक्षक डॉ जितेंद्रनाथ मिश्र ने भारतेंदु बाबू की 137वीं पुण्यतिथि पर उनके चौखंभा स्थित आवास पर आयोजित स्मृति गोष्ठी में कहीं. इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि डॉ मिश्र ने कहा कि अब समय आ गया है जब भारतेंदु समग्र का प्रकाशन अनिवार्य हो गया है. सब कुछ यदि योजना के मुताबिक रहा तो अगले एक वर्ष के अंदर सोच विचार पत्रिका की ओर से भारतेंदु समग्र के प्रकाश की योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा.
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ पवन शास्त्री ने कहा कि जिस प्रकार आदि शंकराचार्य ने अत्यंत अल्पायु में सनातन धर्म के लिए अतुलनीय कार्य किए, उसी प्रकार भारतेंदु बाबू ने भी बहुत ही अल्पवय में हिंदी के लिए अतुलनीय कार्य किए. उन्हें हिंदी साहित्य का शंकराचार्य कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. उनके योगदान पर ही आज की खड़ी बोली और हिंदी साहित्य मजबूती से खड़ा है. इस स्मृति गोष्ठी में डॉ जयशंकर जय, सिद्धनाथ शर्मा, रमेश उपाध्याय ने विचार व्यक्त किए. संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन दीपेश चौधरी ने किया. इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी और पत्रकार उपस्थित थे.