जम्मू: जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका प्रमुख विषय 'हिंदी साहित्य में जम्मू-कश्मीर और जम्मू-कश्मीर में हिंदी भाषा' है. यह संगोष्ठी चार सत्रों में विभाजित है. वीरवार को प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो देवानंद पादा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर हमेशा से ही भारत का शीर्ष रहा है. उन्होंने हिंदी भाषा के विकास के साथ-साथ शारदा लिपि के विकास की भी बात कही है. भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के डीन प्रो गोविन्द सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए यहां की स्थानीय भाषाओं को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है. जम्मू-कश्मीर के अधिवक्ता दिलीप कुमार दुबे ने कहा कि हिंदी जनभाषा की आवश्यकता बने. मुख्य अतिथि आचार्य विश्वमूर्ति शास्त्री ने कहा कि अगर हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है तो उसके विकास के लिए प्रत्येक प्रान्त में हिंदी अकादमी का होना आवश्यक है.
विशिष्ट अतिथि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि हिंदी को जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पूरे भारत में कामकाजी भाषा के रूप में स्वीकार्यता मिलनी चाहिए. संगोष्ठी-संयोजक व हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो रसाल सिंह ने अतिथियों का स्वागत एवं विषय-प्रस्तावना रखने हुए कहा कि प्राचीन काल से ही जम्मू-कश्मीर साहित्य-साधना और विद्या का केंद्र रहा है जिसमें संस्कृत साहित्य एवं हिंदी साहित्य में कश्मीर की देन अपूर्व रही है. वर्तमान समय में यहां डोगरी-कश्मीरी-हिंदी भाषाओं में साहित्य सृजन किया जा रहा है. जिसके फलस्वरूप इस प्रदेश की भाषा, साहित्य, कला एवं संस्कृति का निरंतर विकास हो रहा है. हिंदी भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से इस द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी साहित्य एवं भाषा में रुचि रखने वाले अध्येताओं, विद्यार्थियों एवं साहित्य-प्रेमियों के लिए लाभप्रद और उपयोगी सिद्ध होगा. सत्र का मंच संचालन डॉ वंदना शर्मा और धन्यवाद ज्ञापन डॉ शशांक शुक्ला ने किया.