नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित प्रवासी मंच कार्यक्रम में जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय से पधारे भारतविद राम प्रसाद भट्ट ने 'हिंदी व्याकरणिक परंपरा का इतिहास' विषय पर व्याख्यान दिया. राजधानी स्थित रबींद्र भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अभी तक हिंदी के व्याकरण के इतिहास लेखन को हम राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिंद' या अयोध्या प्रसाद खत्री से प्रारंभ मानते हैं जो 1875 के आसपास लिखे गए थे, लेकिन अभी हुए नए शोधों से पता चला है कि इससे दो शताब्दी पहले ही सूरत में हिंदी व्याकरण के दो इतिहास लिखे गए. पहला इतिहास एक डच योहन योशुआ केटेलार द्वारा 1698 में लिखा गया और दूसरा इतिहास 1704 में एक फ्रेंच पादरी कोपुचिन मिशनरी फादर फ्राकोइस दे तूर द्वारा लिखा गया. उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा में उस देश का भूगोल, संस्कृति और सामाजिक इतिहास झलकता है, अत: उसका सम्मान और संरक्षण बहुत जरूरी है.
भट्ट ने बताया कि जर्मनी में भारतीय भाषाओं के संरक्षण को लेकर कई उल्लेखनीय कार्य हुए हैं. उन्होंने भारत में हिंदी शब्दकोश में नए शब्द न जोड़ें जाने, पत्रकारिता में हिंदी की जगह बढ़ते हिंग्लिश शब्दों, हिंदी के मानकीकरण को लागू न हो पाने और हिंदी साहित्य के विदेशी भाषाओं में नहीं के बराबर या बेहद कम अनुवादों पर भी चिंता व्यक्त की. यह उल्लेखनीय है कि राम प्रसाद भट्ट और उनके अन्य साथी अभी फ्राकोइस दे तूर के व्याकरण पर शोध कार्य कर रहे हैं. इसका जर्मन अनुवाद कुछ समय बाद आएगा. कार्यक्रम के अंत में उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहा कि हमें अपनी अपनी मातृभाषा का प्रयोग और सम्मान करना चाहिए तभी हम उन भाषाओं से जुड़ी भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को बचा पाएंगे.
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