जागरण संवाददाता, गोरखपुर : संवाद केवल मनुष्य की विशेषता है, दूसरे प्राणियों में न्यूनतम संवाद होता है। यह लोकतंत्र की विशेषता है, दूसरी व्यवस्था में यह केवल दिखावे भर का होता है। संवाद हिंसा का विकल्प है। जहां संवाद बंद होता है, वहां हिंसा शुरू हो जाती है। संवाद और संवादी के महत्व को साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री प्रो.विश्वनाथ तिवारी ने ‘संवादी’ के उद्घाटन सत्र में यूं रेखांकित किया। उनके संग मंच की गरिमा बढ़ा रहे इतिहासविद् प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी ने उनसे पहले हिंदी के ऐतिहासिक संघर्ष और आठ सदी के प्रतिरोध की चर्चा कर जो चिंता व्यक्त की थी, उसे निर्मूल सिद्ध करते हुए प्रो.विश्वनाथ तिवारी ने दो टूक कहा- हिंदी की अविरल धारा के आगे अवरोध टिक नहीं सकते हैं। अपनी भाषा हिंदी की समृद्धि के लिए दैनिक जागरण द्वारा आठ वर्ष से चल रहे अभियान ‘हिंदी हैं हम’ के तहत गुरु गोरक्षनाथ की नगरी में ‘संवादी’ के दूसरे संस्करण की शुक्रवार को योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में इस तरह दोनों विद्वान वैचारिक ओज भर गए। सत्र की शुरुआत में प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी ने 1200 से 1947 ईसवी तक के कालखंड को विश्व इतिहास का सबसे अचंभित करने वाले प्रतिरोध का समय बताया। कहा कि विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं मिलेगा जो 150 से 200 वर्ष परतंत्र रहा हो और उसकी संस्कृति बची रह गई हो। केवल भारत ही ऐसा देश है, जिसने आठ सदी की दासता झेली, लेकिन आज भी इसकी संस्कृति को मूल रूप में देखा जा सकता है। हिंदी को लेकर हिंदी पट्टी से बात शुरू करने पर उन्होंने आपत्ति जताई और पंजाब से लेकर बंगाल तक हिंदी में हुए साहित्य सृजन को रेखांकित किया। उन्होंने कालीदास की तुलना सेक्सपियर से करने पर कटाक्ष किया। स्वतंत्रता संघर्ष में हिंदी के योगदान को बताते हुए उन्होंने बताया कि 1870 से 1947 के बीच सर्वाधिक प्रतिबंधित पुस्तकें और साहित्यिक सामग्री हिंदी की थीं। उन्होंने बताया कि अब इन्हें अभिलेखागार से निकालकर पुस्तक का स्वरूप देने की तैयारी है। उन्होंने मेयो की पुस्तक मदर इंडिया के प्रतिउत्तर में लाला लाजपत राय लिखी गई पुस्तक दुखी भारत को गायब करने का उदाहरण दिया। बदलाव की बानगी देते हुए बताया कि अब इतिहास लेखन में हिंदी साहित्य को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्थान दिया जा रहा है। उन्होंने ‘हिंदी हैं हम’ अभियान के लिए दैनिक जागरण की सराहना की। प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने अध्यक्षीय संबोधन में ‘हिंदी हैं हम…’ गजल का उल्लेख करते हुए बताया कि यहां हिंदी का भाव भाषा से नहीं, भारतवासियों से है। यानी भारत को हिंदी कह सकते हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि हिंदी को लेकर आत्महीनता का बोध कम हुआ है। देश के सभी बड़े नेता विभिन्न मंचों पर हिंदी में भाषण देने लगे हैं। प्रो. तिवारी ने कहा कि हिंदी का इतिहास कोई दो सौ वर्षों का नहीं, यह हजार वर्षों से भी पुराना है। उन्होंने प्रो.जान गिल क्राइस्ट के शिष्य द्वारा डेढ़ सौ साल पहले लिखे गए पत्र का उल्लेख कर हिंदी की ताकत को समझाया, जिसमें मेटकाफ ने लिखा था कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक हिंदुस्तानी बोलने वाले मिल जाएंगे। इस आम भाषा की शिक्षा देने के लिए उसने प्रो.जान गिल क्राइस्ट का आभार जताया था। प्रो. तिवारी ने कहा कि हिंदी का विरोध करने वाले भी ट्यूटर बुलाकर अपने बच्चों को हिंदी की शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने आंचलिक भाषाओं को बल देने की अपील की। कहा कि हिंदी यदि समुद्र है तो आंचलिक भाषाएं इसकी सहायक नदियां। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी के भविष्य को बहुत ही उज्ज्वल बताया। इससे पहले दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल ने सत्र की प्रस्तावना रखी। अतिथियों का स्वागत महाप्रबंधक प्रवीन कुमार और गोरखपुर के संपादकीय प्रभारी ने किया।