लखनऊ: “हर रचनाकार की अपनी अलग रचना प्रक्रिया और अनुभव होते हैं, उन्हीं से उसका साहित्य उपजता है. बाल साहित्य रचने की राह आसान नहीं है और यह डिजिटल दौर में और भी मुश्किल हो गया है.” बाल साहित्य पुरस्कार 2024 से पुरस्कृत लेखकों ने ‘लेखक सम्मिलन‘ में अपनी रचना प्रक्रिया श्रोताओं से साझा किये तो यह निष्कर्ष सामने आया. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निराला सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की. अध्यक्षीय वक्तव्य में इस सत्र को बहुत जीवंत बताते हुए उन्होंने कहा कि आज बच्चे टीवी मोबाइल से वह सब सीख रहे हैं जो उन्हें छोटी उम्र में ही वयस्क बना दे रहे हैं. इस डिजिटल दौर में बच्चों को किताबों से प्यार करना सिखाना बहुत बड़ी चुनौती है. ये दायित्व आप जैसे लेखक निभा रहे हैं, ये बड़ी बात है. उन्होंने शिक्षण संस्थानों में बाल अध्ययन केंद्र खोले जाने की जरूरत बतायी. असमिया लेखक रंजू हाजरिका ने कहा कि बाल साहित्य पूरी दुनिया में एक सा ही है और उसका आधार वाचिक साहित्य है. बांग्ला के लिए पुरस्कृत दीपान्विता राय ने कहा कि मैंने अपने बाल साहित्य को परी कथाओं से दूर रखकर वर्तमान समय की समस्याओं से जोड़ने का प्रयास किया है. डोगरी के लिए बाल साहित्य पुरस्कार प्राप्त बिशन सिंह दर्दी ने कहा कि मेरी पुरस्कृत बाल पुस्तक कुक्कड़ू कड़ूं का मतलब बच्चों को अपनी मातृभाषा डोगरी के प्रति जागृत करना है.
गुजराती लेखिका गिरा पिनाकिन भट्ट ने कहा कि मेरी पुरस्कृत पुस्तक ‘हंसती हवेली‘ में किशोर बच्चों की चहक, इस उम्र के तेवर,खनक, चमक आदि को सजीव किया है. कन्नड लेखक कृष्णमूर्ति बिलगेरे ने बच्चों को स्वतंत्रता देना आवश्यक बताया. कोंकणी के लिए सम्मानित हर्षा सद्गुरु शेट्ये ने कहा कि मेरी पुस्तक की मुख्य पात्र बायूल मैं ही हूं. यह मेरी ही कहानी है. मेरा बचपन गाँव हो या शहर, बहुत ही समृद्ध रूप से बीता है. पचास साल पहले के गोवा का गाँव मेरे उपन्यास में आया है. मैथिली के लिए पुरस्कृत नारायण जी ने कहा कि मेरी पुस्तक एकाकीपन भोग रहे मिथिला के ऐसे वृद्धों पर है जो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए बच्चों से अधिक से अधिक घुल-मिलकर रहना चाहते हैं. मराठी लेखक भारत सासणे ने कहा कि रहस्य, रोमांच, साहस, उत्कंठा, जिज्ञासा आदि को लेकर किशोर मन में बड़ा कुतूहल रहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने ‘समशेर कुलूपघरे‘ का प्रतिनिधि चरित्र बच्चों के लिए तैयार किया. पंजाबी लेखक कुलदीप सिंह ने कहा कि मेरा पुरस्कृत नाटक ‘मैं जलियांवाला बाग बोलदा हां‘ जलियांवाला बाग के बहाने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कई गुमनाम नायकों को रंगमंच के माध्यम से बच्चों के सामने प्रस्तुत करता है.
राजस्थानी लेखक प्रहलाद सिंह झोरड़ा ने कहा कि बाल मनोविज्ञान पर आधारित बाल साहित्य और उसमें भी काव्य का सृजन अपने आपमें चुनौती है. बालमन को शब्दों के बजाय लय अधिक प्रभावित करती है. मैंने अपने इन गीतों में राजस्थान की संस्कृति, प्रकृति, रीति-रिवाज और तीज-त्योहारों के साथ ही यहाँ के कतिपय ऐतिहासिक महापुरुषों को भी नायक बनाया है. संस्कृत के लिए पुरस्कृत हर्षदेव माधव ने कहा कि पंचतंत्र और हितोपदेश से हटकर कथाओं का सर्जन मैंने किया है. मेरी कथाएं अद्भुत रस, मनोरंजन, मनोरंजक बालकों के कल्पनाशील मन को आनंद देने वाली और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जुड़ी हैं. इसके अतिरिक्त भार्जिन जेक‘भा मोसाहारी (बोडो), मुजफ्फर हुसैन दिलबर (कश्मीरी), उन्नी अम्मायंबलम् (मलयालम), क्षेत्रिमयुम सुवदनी (मणिपुरी), वसंत थापा (नेपाली), मानस रंजन सामल (ओड़िआ), दुगाई टुडु (संताली), युमा वासुकि (तमिल), पामिदिमुक्कला चंद्रशेखर (तेलुगु) ने भी अपने-अपने लेखकीय अनुभव साझा किए.