सिलवासा: “राजनीति राष्ट्र से ऊपर नहीं हो सकती. विकास के मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए. हम राष्ट्रवाद, राष्ट्र की प्रगति और विकास के मूल्य पर अत्यधिक राजनीति का शिकार नहीं हो सकते.” यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दादर और नगर हवेली तथा दमन और दीव के सिलवासा में डोकमर्डी ऑडिटोरियम में सार्वजनिक समारोह में एक सभा को संबोधित करते हुए कही. सभी क्षेत्रों में निरंतर सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर चीज में विकास की गुंजाइश है. हर दिन, हम देखते हैं कि हम आज जो कुछ भी करते हैं, वह कल के लिए बेहतर होना चाहिये. उन्होंने देश की प्रगति को आगे बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया, लेकिन देश और उसके लोगों के स्वास्थ्य से समझौता करने वाले कार्यों के प्रति सचेत भी किया. उन्होंने घोषणा की कि भारत के स्वास्थ्य को नष्ट करना भारत माता के सीने में खंजर घोंपने से कम नहीं है और इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
उपराष्ट्रपति ने स्थानीय स्तर पर उत्पादित की जा सकने वाली आयातित वस्तुओं के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रश्न पूछते हुए कहा कि हम मौद्रिक लाभ के लिए विदेशी वस्तुओं का उपयोग क्यों करते हैं? क्या हमारे देश में फर्नीचर विदेश से आएगा? क्या बोतलें विदेश से आएंगी? यहां तक कि पतंग, दीया, मोमबत्तियां और कपास भी अब विदेशों से आ रहे हैं.” उन्होंने इस प्रथा की तीन प्रमुख हानियों पर प्रकाश डाला कि विदेशी मुद्रा की कमी, घरेलू कर राजस्व की हानि और भारतीय उद्यमियों के लिए समाप्त होने वाले अवसर जो बढ़ने और पनपने चाहिए थे. उपराष्ट्रपति महोदय ने इस तथ्य पर अफसोस व्यक्त किया कि आयातित वस्तुओं पर ऐसी निर्भरता अल्पकालिक आर्थिक लाभ से प्रेरित हैं और अंततः देश की दीर्घकालिक समृद्धि को नुकसान पहुंचाती हैं. धनखड़ ने समानता और सामाजिक गतिशीलता की दिशा में भारत की अविश्वसनीय यात्रा को दर्शाते हुए, विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को नेतृत्व के उच्चतम पदों तक पहुंचने के लिए सशक्त बनाने में देश की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की दिक्कत यही है कि गरीबी के बावजूद एक चाय बेचने वाला भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन गया? एक किसान का बेटा उपराष्ट्रपति कैसे बन गया? जनजातीय पृष्ठभूमि की एक महिला देश की राष्ट्रपति कैसे बन गई?